‘भ्रष्टाचार मुक्त’ का नारा देने वाले प्रधानमंत्री के गृह राज्य गुजरात में हज़ारों करोड़ का घोटाला सामने आया है। और ये घोटाला उनके कार्यकाल के दौरान भी हुआ है। लेकिन हैरत की बात ये है कि सालों तक ये सब चलता रहा और कोई कार्रवाई नहीं हुई। कैग ने अपनी रिपोर्ट में इसका खुलासा किया है।
गुजरात में भी सरकारी धन के खर्च के इस्तेमाल में गड़बड़ी का मामला सामने आया है। 16 वर्षों से 19 विभागों के कई मदों में खर्च धन का हिसाब-किताब ही नहीं दिया गया है। वर्ष 2018 में आई कैग की ऑडिट रिपोर्ट में इसका इस गड़बड़झाले का खुलासा हुआ है।
ये मामला बिहार के चारा घोटाले जैसा ही है। वहां भी इसी तरह अलग-अलग सरकारी स्रोतों से पैसा निकालने के बाद उनके खर्च का हिसाब नहीं था।
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वर्ष 2001 से लेकर वर्ष 2015-16 के बीच करीब 2140 करोड़ रुपए का इस्तेमाल कहां हुआ, इसका सरकार ने उपयोगिता प्रमाणपत्र ही नहीं दिया है। ये पैसा किसी एक या दो मामलो में गायब नहीं हुआ बल्कि 100 से ज़्यादा मामलों में पैसे की गड़बड़ी की गई।
ऑडिट की अवधि का जो समय है, सिर्फ मई 2014 के बाद का वक्त छोड़ दें तो बाकी समय नरेंद्र मोदी राज्य के मुख्यमंत्री रहे।
ऑडिट के दौरान चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि 14.41 करोड़ के गबन के 158 मामलों में सरकार ने कोई कार्रवाई ही नहीं की। 2528 कार्यों के लिए जारी 228.03 करोड़ रुपए का हिसाब किताब पिछले आठ साल से अधिक समय से लटका हुआ है।
इसी तरह 64 कार्यों के लिए जारी 250.96 करोड़ की धनराशि का उपयोगिता प्रमाणपत्र छह से आठ साल बीत जाने पर भी जमा नहीं हुआ।
वहीं, 166.50 करोड़ के 157 उपयोगिता प्रमाणपत्र चार से छह वर्ष बीत जाने पर भी नहीं जमा हुए। इसके अलावा 942.45 करोड़ के यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट एक से दो साल के बीच के लंबित हैं।
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इतनी लापरवाही तब है जब गुजरात के वित्तीय नियम 1971 और जनरल फाइनेंशियल रूल्स 2005 के मुताबिक,किसी भी विशेष योजना के तहत अगर बजट जारी हो तो वित्तीय वर्ष खत्म होने के अधिकतम 12 महीने के भीतर उसका हिसाब-किताब सहित उपयोगिता प्रमाणपत्र शासन में जमा कर दिया जाए। ताकि पता चल सके कि धनराशि का सही इस्तेमाल हुआ है या नहीं।
सिर्फ इतना ही नहीं नियम के मुताबिक, जब तक कोई विभाग या सरकारी संस्थान जारी बजट का उपयोगिता प्रमाणपत्र न दे, तब तक उसे दूसरा बजट न जारी किया जाए।
लेकिन नियम सिर्फ कागज पर ही जिंदा है। क्योंकि 2140 करोड़ रुपए का हिसाब नहीं दिया गया और विभागों को इसके बावजूद बजट मिलता रहा।
इन्ही कारणों से तो मोदी जी सभी शासकीय संस्थाओं के निजीकरण में लगे हैं।अब बजट निजी संस्थाओं को जाएगा,हिसाब किताब वही देंगी और कमीशन नेताओं को आराम से हवाला के जरिये निजी संस्थाओं के मालिक कर दिया करेंगे।घोटालों का सबूत ही नही रहेगा।