राफेल मामला 2019 चुनाव में मोदी सरकार के विरुद्ध प्रमुख मुद्दा बन सकता है। विपक्ष ने इस मामले में पूरी तरह से सक्रीय नज़र आ रहा है। कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने बुधवार को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) से मुलाकात कर विस्तृत जांच की मांग की है।
राफेल डील को लेकर कांग्रेस पार्टी ने मोदी सरकार पर कुछ महीनों से हमले तेज कर दिए हैं। कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल के सीएजी से मुलाकात के बाद कांग्रेस पार्टी नेता आनंद शर्मा ने कहा, हमने इनक्लोजर के साथ-साथ विस्तृत ज्ञापन सीएजी को सौंपा है जिससे स्पष्ट होता है कि राफेल खरीद में अनियमितता हुई हैं। उम्मीद है इस मामले में सीएजी जांच करेंगे।
इससे पहले पूर्व रक्षा मंत्री और कांग्रेस नेता एंटनी ने सीतारमण से पूछा था कि अगर केंद्र सरकार की ओर से खरीदा जा रहा विमान वाकई सस्ता है तो उसने 126 की बजाए 36 ही विमान क्यों खरीदे। इस पर उन्होंने कहा, ‘विमान खरीदना कोई साधारण खरीद प्रक्रिया नहीं है। इसके लिए एक तय प्रक्रिया है।’
क्या है विवाद
राफेल एक लड़ाकू विमान है। इस विमान को भारत फ्रांस से खरीद रहा है। कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि मोदी सरकार ने विमान महंगी कीमत पर खरीदा है जबकि सरकार का कहना है कि यही सही कीमत है। ये भी आरोप लगाया जा रहा है कि इस डील में सरकार ने उद्योगपति अनिल अंबानी को फायदा पहुँचाया है।
बता दें, कि इस डील की शुरुआत यूपीए शासनकाल में हुई थी। कांग्रेस का कहना है कि यूपीए सरकार में 12 दिसंबर, 2012 को 126 राफेल विमानों को 10.2 अरब अमेरिकी डॉलर (तब के 54 हज़ार करोड़ रुपये) में खरीदने का फैसला लिया गया था। इस डील में एक विमान की कीमत 526 करोड़ थी।
इनमें से 18 विमान तैयार स्थिति में मिलने थे और 108 को भारत की सरकारी कंपनी, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल), फ्रांस की कंपनी ‘डासौल्ट’ के साथ मिलकर बनाती। 2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी फ़्रांस यात्रा के दौरान इस डील को रद्द कर इसी जहाज़ को खरीदने के लिए में नई डील की।
यशवंत सिन्हा का आरोप- PM मोदी ने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर खुद ही ‘राफेल डील’ को तय किया
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नई डील में एक विमान की कीमत लगभग 1670 करोड़ रुपये होगी और केवल 36 विमान ही खरीदें जाएंगें। नई डील में अब जहाज़ एचएएल की जगह उद्योगपति अनिल अंबानी की कंपनी बनाएगी।
जबकि अनिल अम्बानी की कंपनी को विमान बनाने का कोई अनुभव नहीं है क्योंकि ये कंपनी राफेल समझौते के मात्र 14 दिन पहले बनी है। साथ ही टेक्नोलॉजी ट्रान्सफर भी नहीं होगा जबकि पिछली डील में टेक्नोलॉजी भी ट्रान्सफर की जा रही थी।