राफेल मामले को लेकर अब मोदी सरकार बड़े संकट में आ चुकी है। पहले तो इस मामले में विपक्ष ही सरकार को घेर रहा था। लेकीन भारत की विमान बनाने वाली सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के पूर्व प्रमुख ने बयान देकर सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।

इस मामले में भ्रष्टाचार के आरोपों को नकारते हुए कुछ दिन पहले रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने बयान दिया था कि एचएएल ‘डासौल्ट’ के साथ विमान बनाने के लिए तकनीकी रूप से सक्षम नहीं थी।

एचएएल के पूर्व प्रमुख टी सुवर्णा राजू ने कहा है कि भारत में ही राफेल लड़ाकू विमान बना सकती थी। उन्‍होंने पूछा था कि केंद्र सरकार फाइलें सावर्जनिक क्‍यों नहीं कर रही है।
राजू ने हिंदुस्‍तान टाइम्‍स से कहा, ”जब एचएएल 25 टन का सुखोई, चौथी पीढ़ी का लड़ाकू विमान जिसे वायुसेना मुख्‍य रूप से इस्‍तेमाल करती है, बना सकती है तो हम क्‍या बात कर रहे हैं? हम जरूर ऐसा (राफेल विमान बना) कर लेते।” गौरतलब है कि यह पहली बार है जब एचएएल से किसी ने सार्वजनिक रूप से सौदे पर टिप्‍पणी की है।

इसके बाद रक्षा मंत्री विपक्ष के निशाने पर आ गई हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल ने कहा है कि रक्षा मंत्री को जरूर इस्तीफा दे देना चाहिए।

क्या है विवाद

राफेल एक लड़ाकू विमान है। इस विमान को भारत फ्रांस से खरीद रहा है। कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि मोदी सरकार ने विमान महंगी कीमत पर खरीदा है जबकि सरकार का कहना है कि यही सही कीमत है। ये भी आरोप लगाया जा रहा है कि इस डील में सरकार ने उद्योगपति अनिल अंबानी को फायदा पहुँचाया है।

बता दें, कि इस डील की शुरुआत यूपीए शासनकाल में हुई थी। कांग्रेस का कहना है कि यूपीए सरकार में 12 दिसंबर, 2012 को 126 राफेल विमानों को 10.2 अरब अमेरिकी डॉलर (तब के 54 हज़ार करोड़ रुपये) में खरीदने का फैसला लिया गया था। इस डील में एक विमान की कीमत 526 करोड़ थी।

रक्षामंत्री ने 50 साल पुरानी सरकारी कंपनी को ‘ख़राब’ और अंबानी की 14 दिन पुरानी कंपनी को ‘उम्दा’ बताया

इनमें से 18 विमान तैयार स्थिति में मिलने थे और 108 को भारत की सरकारी कंपनी, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल), फ्रांस की कंपनी ‘डासौल्ट’ के साथ मिलकर बनाती। 2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी फ़्रांस यात्रा के दौरान इस डील को रद्द कर इसी जहाज़ को खरीदने के लिए में नई डील की।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नई डील में एक विमान की कीमत लगभग 1670 करोड़ रुपये होगी और केवल 36 विमान ही खरीदें जाएंगें। नई डील में अब जहाज़ एचएएल की जगह उद्योगपति अनिल अंबानी की कंपनी बनाएगी।

जबकि अनिल अम्बानी की कंपनी को विमान बनाने का कोई अनुभव नहीं है क्योंकि ये कंपनी राफेल समझौते के मात्र 14 दिन पहले बनी है। साथ ही टेक्नोलॉजी ट्रान्सफर भी नहीं होगा जबकि पिछली डील में टेक्नोलॉजी भी ट्रान्सफर की जा रही थी।

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