वर्ष 2017-18 आर्थिक नज़रिए से भारत के लिए बहुत ख़राब गया है। जानकार इसके पीछे नोटबंदी और GST को कारण बताते हैं। सरकार के इन दो क़दमों ने व्यवस्था के हर व्यक्ति को प्रभावित किया है।

बैंकों के फंसे हुए कर्ज (एनपीए) की समस्या को लेकर हाल ही में आई एक रिपोर्ट ये बताती है कि इस वर्ष में छोटे उद्योगों की स्थिति कितनी ख़राब हुई है।

देश के बैंकों की स्थिति बिगडती जा रही है। फंसे हुए कर्ज (एनपीए) की समस्या बैंकों के लिए अभिशाप बन गई है। हाल ही में आई इंडिया रेटिंग के एक रिपोर्ट बताती है कि 2017-18 में किस तरह छोटी कम्पनियाँ, लघु एवं मध्यम आकार के उद्यमियों और व्यक्तिगत लोगों का एनपीए में हिस्सा अचानक बढ़ गया है।

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एन.पी.ए बैंकों का वो लोन होता है जिसके वापस आने की उम्मीद नहीं होता। इस कर्ज़ में 73% से ज़्यादा हिस्सा उद्योगपतियों का है।

अक्सर उद्योगपति बैंक से कर्ज़ लेकर खुद को दिवालिया दिखा देते हैं और उनका लोन एन.पी.ए में बदल जाता है। यही उस लोन के साथ होता है जिसे बिना चुकाए नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे लोग देश छोड़कर भाग जाते हैं।

इंडिया रेटिंग ने बैंकों पर जारी अपनी रिपोर्ट में सोमवार को कहा कि निजी क्षेत्र के बैंकों और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में भारतीय स्टेट बैंक और बैंक आफ बड़ौदा को छोड़ सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य सभी बैंकों का परिदृश्य नकारात्मक बना हुआ है।

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रिपोर्ट में कहा गया है कि छोटी कंपनियों, लघु एवं मध्यम आकार के उद्यमियों और व्यक्तिगत, खुदरा कर्जों का हिस्सा एनपीए में बढ़ा है। वित्त वर्ष 2016-17 के मुकाबले 2017- 18 में इनमें वृद्धि हुई है। मतलब के छोटे व्यापारी या छोटे व्यवसाय जो अब तक समय रहते अपने कर्ज की अदायगी कर रहे थे वो वर्ष 2017-18 में पैसा नहीं लौटा पा रहे हैं।

इन लोगों का प्रतिशत 2017- 18 में बढ़कर 40% हो गया जिन्होंने पांच करोड़ रुपये तक के कर्जों में 31 से 60 दिन की अवधि के दौरान कर्ज की किस्त का भुगतान नहीं किया। जबकि एक साल पहले ऐसे लोग 29% थे।

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इसी प्रकार 61 से 90 दिन तक जहां वापसी नहीं हुई उनका हिस्सा पहले के 12 प्रतिशत से बढ़कर 68 प्रतिशत हो गया। कारपोरेट क्षेत्र में दबाव में आये कर्ज के मामले में रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दो साल के दौरान कंपनियों का कुल फंसा कर्ज 20 से 21 प्रतिशत के दायरे में है।

गौरतलब है कि कई अर्थशास्त्रियों का कहना है कि वर्ष 2017-18 भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बहुत ख़राब रहा है। नोटबंदी और उसके बाद GST ने कारोबार को एक के बाद एक बड़ा झटका दिया है।

दावोस सम्मलेन के दौरान एक इंटरव्यू में अर्थशास्त्री और आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी इस बात को माना था।

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