लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने ज्यादा से ज्यादा रोजगार देने का वादा किया था। मगर अब ऐसा लगने लगा है की जिन्हें रोजगार मिला था अब वो भी बेरोजगार होने की कगार पर हैं। ताजा मामला उत्तर प्रदेश का है।

जहां सभी योगी सरकार ने सिर्फ पुलिस और चिकित्सा विभाग को छोड़ सभी सरकारी विभागों को आदेश दे दिया गया है कि सरकार अब नए पदों पर सरकारी नौकरी न निकाले। अगर ज़रूरत पड़ती है तो आउटसौर्सिंग से ही काम चला लिया जायेगा। मतलब ये कि अब नियमित नौकरियों में सरकार ने कटौती कर दी है।

बीते बुधवार को योगी सरकार के मुख्य सचिव ने प्रेस कांफ्रेंस करते हुए कहा कि पुलिस और चिकित्सा छोड़कर किसी विभाग में अब नए पद नहीं दिए जायेंगें। विभागों में दैनिक वेतन, सविंदा पर कर्मचारियों को रखने पर लगी रोक बरकरार रहेगी।

अगर ज़रूरत पड़ी तब बाहर की एजेंसी से कॉन्ट्रैक्ट पर लोग रखें जा सकेंगें। इसका मतलब ये कि चतुर्थ श्रेणी और तकनीकी पदों पर  नियमित नियुक्तियां नहीं की जाएंगी। इनमें वाहन चालक,माली वायरमैन, इलेक्ट्रीशियन, प्लम्बर, मिस्त्री, लिफ्टमैन, एसी मैकेनिक के पदों पर आउटसोर्स से काम चलाया जाएगा।

इनमें उन्हें भी नियमित कर्मचारी नहीं दिया जायेगा जैसे सलाहकारों और को भी सहयोगी स्टाफ की व्यवस्था के लिए कोई पद सृजित किया जाएगा।

योगी सरकार का इसके पीछे तर्क है की उसे किसानों के 36 हज़ार करोड़ कर्जमाफी करनी है। जिसके लिए पैसे कल्याणकारी योजनाएं लागू करने की तैयारी कर रही है, लेकिन सरकार के पास आमदनी के सीमित संसाधन हैं।

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हालाकिं कि योगी सरकार ने ये नहीं बताया है कि वो नौकरी कम करके या फिर नए वाहनों को न खरीद करके या फिर सरकारी विभागों में नए साल के कैलेंडर, डायरी और पर्सनल लेटर के मुद्रण और वितरण पर रोक लगा देने से कितना बचत कर लेगी क्योंकि किसानों के कर्जमाफ़ी के लिए कई नौकरियों को ख़त्म कर देना और फिर बाहरी कंपनी से कर्मचारी नियुक्त करना फिर उसमें कितना टोटल कितना खर्च आएगा नहीं बताया गया है।

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योगी सरकार को बता देना चाहिए था कि आखिर इन सब खर्चो की बचत कर क्या 36 हज़ार करोड़ का लाया जा सकता है? योगी सरकार अगर पैसे बचा भी लेगी तो कैसे? और अभी तक इन सब पर कितना खर्च आ रहा था?

ये भी बताना चाहिए था और बचत के नाम रोजगार कम कर देना वो भी बिना किसी योजना के ऐसी है जैसी नोटबंदी और जीएसटी लगा दी गई जिसके नतीजा हुआ ये देश में महंगाई और बेरोजगारी आसमान छूने लगी और सरकार अभी भी वादे ही करती नज़र आ रही है।

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