ये 2018 का भारत है जहां मीडिया मानवाधिकार के नहीं कथित राष्ट्रवाद के पाले में खड़ा है। और ये वो राष्ट्रवाद है जिसका पर्याय सेना, विशेष धर्म और विशेष राजनीतिक दल हैं।

भारत तेजी से सैन्यवादी राष्ट्रवाद की ओर बढ़ रहा है। अगर रफ्तार यही रही तो दक्षिणपंथी राजनीति और मीडिया का समर्थन जल्द ही भारत को पाकिस्तान बना देगा!

हाल ही में जम्‍मू-कश्‍मीर के उधमपुर जिले में कुछ कथित आतंकवादी मारे गए। घटना बुधवार यानी 12 सितंबर की है। सेना ने अपने सर्च ऑपरेशन में 3 कथित आतंकियों को मार गिराया। इसके बाद सुरक्षाबल ने मारे गए आतंकियों को रस्सी से बांधकर सड़क पर घसीटा।

सड़क पर लाश घसीटने की इस बर्बर घटना पर मानवाधिकार संगठनों ने आपत्ति जताई है। आपत्ति जताई भी जानी चाहिए क्योंकि सैनिक कार्रवाई और मानवाधिकार दो अलग-अलग मुद्दे हैं। और दोनो की ही अपनी जरूरते हैं।

सवाल उठता है कि जब सुरक्षाबल ने आतंकियों को मार ही गिराया था तो लाश को रस्सी से बांधकर सड़कर पर घसीटने की क्या जरूरत थी? क्या ये सैनिक कार्रवाई का हिस्सा है?

सेना का अब तक इसपर कोई बयान नहीं आया है। लेकिन खाली बैठे बड़ी मूछों वाले रिटायर सैनिक और गोदी मीडिया इस बर्बरता के समर्थन में फर्जी तर्क पेश कर रहे हैं। Zee News के कुख्यात/विख्यात शो ‘ताल ठोक के’ में आज शाम इसी मुद्दें पर डिबेट किया गया।

शाम पांच बजे प्रसारित होने वाले इस शो के एंकर अमन चोपड़ा ने ट्विटर पर लिखा ‘आतंकियों को घसीटेंगे नहीं तो माला पहनाएंगे?’ ‘हिंसक राष्ट्रवाद’ का पथ प्रदर्शित करते इस वाक्य में प्रश्नचिह्न तो ढालमात्र है।

और विडंबना देखिए जब बीजेपी नेता जयंत सिन्हा लिंचिंग अभियुक्तों को माला पहनाते हैं तो ये गोदी पत्रकार चुप्पी साध लेता है। लेकिन जब सवाल मानवाधिकार को लेकर उठता है तो माला पर तंज याद आता है।

अब लौटते हैं सुरक्षाबल द्वारा लाश को सड़क पर घसीटने के मुद्दे पर। शो के एंकर अमन चोपड़ा इस बर्बर घटना को मानवाधिकार का हनन मानने से साफ इंकार करते हैं। इतना ही नहीं वो मानवाधिकार का सवाल उठाने वाले कार्यकर्ताओं को आतंकियों का हमदर्द भी घोषित कर देते हैं।

सुरक्षाबल ने कर्रवाई करते हुए आतंकियों को गोली मार दिया था, वो मर गए थे। फिर उन्हें घसीटने की क्या जरूरत थी? शो के एंकर अमन चोपड़ा सेना का बचाव करते हुए कहते हैं कि आतंकियों के शरीर में बम बंधे होने की आशंका होती है, इसलिए ऐसा एहतियात बरतने की आवश्‍यकता होती है।

अब यहां अमन चोपड़ा अपनी ही बात में घिर जाते हैं। बुधवार को सुरक्षाबल ने 3 आतंकियों को मारा लेकिन सड़क पर घसीटा सिर्फ एक को। क्या बाकि दो आतंकियों के शरीर में बम बंधे होने की आशंका नहीं थी? या फिर ये सारा खेल ही सत्ताधारियों के इशारे पर ‘हिंसक राष्ट्रवाद’ के गुब्बारे में हवा भरने के लिए किया गया था?

और अगर अमन चोपड़ा का तर्क फर्जी नहीं है तो भारतीय सेना ने अब तक ये तर्क पेश क्यों नहीं किया? अमन चोपड़ा क्यों बिना फीस के वकील बने हुए हैं?

सत्ताधारी बीजेपी से मानवाधिकार की उम्मीद करना तो बेकार ही है। शो के दौरान ही बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने साफ कहा कि इन आतंकियों के साथ ऐसा ही करना चाहिए।

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इससे पहले बीजेपी कश्मीर में फारूक अहमद डार को मानव ढाल बनाए जाने के भी समर्थन में थी। इतना ही नहीं बीजेपी प्रवक्ता तजिंदर पाल सिंह बग्गा अपनी वेबसाइट पर मानव ढाल की सांकेतिक तस्वीरवाले टी-शर्ट भी बेचते पाए गए थे।

ऐसे में बीजेपी से मानवाधिकार की उम्मीद करना अपने आप में पत्थर पर सिर पटकने जैसा है। वैसे बता दें कि थल सेना की कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी में मानव ढाल बनाने वाले मेजर गोगोई दोषी करार दिए गए थे। बावजूद इसके कश्मीर में एक बार फिर सुरक्षाबल ने मानवाधिकार का हनन किया है!

मीडिया ये क्यों भूल जाती है कि सेना सुरक्षात्मक कार्रवाई करने के लिए होती है हिंसा का प्रदर्शन करने के लिए नहीं। मारे गए आतंकियों को रस्सी से बांधकर सड़क पर घसीटने से भारत कैसे महान बन जाता है? क्या हिंसा का प्रदर्शन ही मौजूदा सरकार और मेनस्ट्रीम मीडिया के लिए राष्ट्रवाद का पैमाना है?

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