आकड़ों के माध्यम से भी ये सिद्ध हो चुका है कि भारतीय न्यायपालिका पर सिर्फ कुछ घरानों का कब्जा है। इन घरानों से ताल्लुक रखने वाले लोग ही हर साल जज और वकील बनते हैं। नियुक्ती की इस प्रक्रिया को ‘कॉलेजियम सिस्टम’ कहा जाता है।

ये सिस्टम पिछले कुछ वर्षों से विवादों में है। पूरे देश को न्याय देने वाले संस्थान के पास खुद के लिए कोई न्यायसंगत प्रक्रिया नहीं है। रिप्रजेंटेशन की स्थिति इतनी खराब है कि सुप्रीम कोर्ट में इस समय एक भी दलित जज नहीं है।

शायद यही वजह है कि “कॉलेजियम सिस्टम” को ‘कॉलेजियम कलंक’ कहा जाने लगा है। वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल आकड़ों के साथ बताते हैं कि ‘देश के सभी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों का बायोडाटा वेबसाइट पर मौजूद है। मैने सारा डाटा निकालकर चेक किया है।

जुलाई, 2018 की स्थिति यह है कि 60% से ज्यादा जज सीधे वकील से जज बना दिए गए हैं। उन्होंने जज बनने के लिए पूरी जिंदगी में कोई परीक्षा नहीं दी। कोई इंटरव्यू नहीं दिया। कोलिजियम के पांच जजों ने उन्हें बस चुन लिया। मर्जी उनकी। इसलिए अदालतों में जजों के चैंबर रिश्तेदारों से भर गए हैं।’

क्रीमी लेयर के नाम पर पिछड़ों को बांटा गया है, दलित-आदिवासी इसे समझें और प्रमोशन में आरक्षण की मांग पर अड़े रहें

दिलीप मंडल कॉलेजियम सिस्टम को दलितों, पिछड़ों के खिलाफ आने वाले फैसलों से भी जोड़ कर देखते हैं। वो बताते हैं कि ‘क्या आप जानते हैं कि एससी-एसटी एक्ट के खिलाफ फैसला लिखने वाले दोनों जजों यूयू ललित और ए.के. गोयल ने पूरी जिंदगी में कभी जज बनने का एक्जाम नहीं दिया, दोनों साधारण वकील थे।

ललित को सीधे सुप्रीम कोर्ट में जज बनाया गया तो गोयल को सीधे हाई कोर्ट में जज बना दिया गया, जहां से वे कोलिजियम की सिफारिश पर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए।

क्या अपने पसंद के वकील को उठाकर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का जज बना देने का सिस्टम बंद नहीं होना चाहिए? क्या ये बेहतर नहीं है कि जज परीक्षा पास करके पहले जिला, फिर हाईकोर्ट और तब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचें?

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग बने और परीक्षा पास करके जज बनाने की व्यवस्था हो। भाई भतीजावाद वाला कोलेजिमय सिस्टम बंद हो।

बता दें कि उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में जजों की नियुक्ति तथा तबादलों का फैसला भी कॉलेजियम ही करता है। कौन से जज पदोन्‍नत होकर सुप्रीम कोर्ट जाएंगे यह फैसला भी कॉलेजियम ही करता है।

16 COMMENTS

  1. Aap tho bhagwati mata aur bhagwan ka soch ko galat tehraya hai insaan. Supreme Court sirf Constitution of India ko safe guard karta hai, dharm nahi. Issiliye the case on Shabarimala will be reviewed. SATYAM EVA JAYATE. Do you know google this arent messages which are spam.Just because you dont understand diesnt make you a GOD in this hundred years on life. Religion are theology not idiocasy.

  2. एस सी एस टी पिछड़ा को भी क्रास कर प्रमोट होंगे एटरोसिटी का दुरुपयोग पिछड़ों पर भी होगा अपना वर्ग संगठित करें

  3. आदरणीय दिलीप मंडल एक बहुत अच्छे समाछ चिन्तक है,,इनको इस कार्य के लिए बहुत-2 धन्यबाद

  4. It is not Fair selection of judges should be through UPSC examination New Delhi as class 1 officer posting should be start from Distt judge. and further through promotion 1st high Court than 2nd supreme Court judge.
    Collegium system should be stopped immediately.
    Every thing should be Fair.

  5. 15 % SC 7.5 % ST 27 % OBC = 49.5 %
    Balance 50.5 % Seats were open for General Category means open for all category But Suprime Court hasreserved 50.5 % reseved for General condidates i,e only for (Brahman Baniya & thakur ) and Modi Government has given 10 % reservation to poor upper cost i,e Brahmins ,Baniya and thakurs .Now balance 40.5 % reservation given to Rich upper caste people Which is totally wrong.
    Judgment of Suprime court for 50.5 % reservation given to those people which population is only 15 % of total of india is also wrong..

  6. #BanCollegiumSystem
    i)The number of judges in the supreme and high courts should increase in proportion to the population of India so that cases are settled quickly.
    ii)The selection of judges will be done by the Union Public Service Commission by completing the collegium system.

  7. जज की नियुक्ति हमेशा एक एग्जाम की परीक्षा पास करने वाली प्रकिर्या के तहत ही होना चाहिए ।तभी योग्य न्यायिक अधिकारी जनता को मिलेंगें।और असल में न्याय जनता को मिल सकता है।जय हिंद जय भारत

  8. जिस देश के पास दुनिया के सबसे बड़ा संविधान हो और उस देश का न्याय व्यवस्था इस तरीके का हो बहुत ही दुख की बात है।

  9. मेरे ख्याल से हर वो पद जिसपर कोई व्यक्ति कार्य करता है और बदले में वेतन परप्रा करता है के लिए प्रतियोगिता परीक्षा एवं साक्षात्कार मे उत्तीर्ण होना आवश्यक कर देना चाहिए फिर चाहे वो न्यायाधीश का पद हो चाहे नेता ।

  10. मैं तो यह मानकर चल रहा हूं कि कोलेजियम व्यवस्था न्याय संगत नहीं है यह एक विशेष समुदाय को लाभ लेने की व्यवस्था है और भारत में मनुवादियों की सोची समझी रणनीति के तहत काम चल रहा है और भारत को विदेशियों लोगों की मानसिकता हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की साज़िश के तहत काम चल रहा है भारत को हिन्दुस्तान घोषित कर दिया जाए और मनुस्मृति में वर्णित नियमों और कानूनों के तहत सज़ा दी जाए यह व्यावस्था लागू करने की कोशिश की जा रही है और एक विशेष समुदाय को गुलाम बनाने के लिए तैयारियां जोरों पर चल रही हैं

  11. सन् 1919 में ब्रिटिश सरकार ने ब्राह्मणों के जज बनने पर प्रतिबन्ध किया था की ब्राह्मणों के अंदर न्याय नही अन्याय होता है।किसी भी सुनवाई में वो स्पष्ट निर्णय ना देकर हमेसा गलत निर्णय लेता है।आज 60% जज बिना परिक्षा पास किये बिना एक साधारण वकील से सुप्रीमकोर्ट और हाईकोर्ट के जज बन बैठे ये किस वर्ग से आते है।पहले उसकी जांच पड़ताल होनी चाहिए न्यायालय न्याय के लिए खुले है अत्याचार घृणा के लिए नही और सभी वर्ग की जनसंख्या के अनुपात से व्यक्ति को उसका हकधिकार मिलना चाहिए सबसे पहले जो बहुमूल्य निवासी है उसे पहले प्राथमिकता मिलनी चाहिए ना की भारत में व्यापार के नाम पर हजारो सालो से भारत में रह रहे व्यक्ति को नहीं पहले भारत निवासी फिर बहारी वर्ग

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