इस बार अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार जेएनयू छात्र रहे अभिजीत बनर्जी और उनके दो साथियों को मिला है।

उनके साथ पुरस्कार साझा करने वाली एस्थर डुफ्लो सहयोगी अर्थशास्त्री और उनकी पत्नी हैं और माइकल क्रेमर भी उनके सहयोगी और अर्थशास्त्री।

इन अर्थशास्त्रियों ने गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र में विशेष काम किया है।

माना जाता है कि अभिजीत बनर्जी के ही एक अध्ययन पर अमल करते हुए भारत में विकलांग बच्चों की स्कूली शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाया गया था, जिससे करीब 50 लाख बच्चों को फायदा मिल रहा है।

अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार पाने वाले अभिजीत बनर्जी ने मोदी सरकार द्वारा की गई नोटबंदी का भी विरोध किया था।

उन्होंने अपने लेख में कहा था कि 500 और 1000 के नोटों को बंद करके 500 के नए नोट और 2000 के नोट जारी करने के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है।

उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि उस समय एटीएम मशीनों में 2000 के नोट फिट नहीं आ रहे थे और नोटबंदी के डेढ़ महीने बाद 23 दिसंबर 2016 को सरकुलेशन के लिए राशि की कमी भारी कमी थी।

इसके साथ ही बनर्जी ने कहा था कि शुरू में नोटबंदी से जितने नुकसान का आकलन किया जा रहा था वास्तव में उससे कहीं ज्यादा नुकसान होगा ।

उन्होंने यह लेख हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की नम्रता काला के साथ साझा रूप में लिखा था और मोदी सरकार की जमकर आलोचना की थी।

उन्होंने तब ही स्पष्ट कर दिया था कि इससे सबसे ज्यादा नुकसान असंगठित क्षेत्र को होगा। जहां पर 85% या उससे ज्यादा लोगों को रोजगार मिला हुआ है।

साथ ही अभिजीत ने दावा किया था कि कुछेक अपवाद को छोड़ दिया जाए तो नोटबंदी पर ज्यादातर अर्थशास्त्रियों का नजरिया नेगेटिव ही है।

साथ ही उन्होंने कहा कि अगर नोटबंदी भ्रष्टाचार में कमी लाने के लिए की गई है तो 2000 का नोट क्यों जारी किया गया है इससे तो अवैध लेनदेन में और ज्यादा आसानी हो जाएगी।

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