जम्मू कश्मीर में अभी तनाव का माहौल है। ना वहां मोबाइल चल रहा है और ना ही आम इंसान सड़कों पर नज़र आ रहा है। नज़र आ रहा है तो सिर्फ सेना का जवान जो जान हथेली पर लिए शहर के चप्पे चप्पे पर नज़र रखे हुए है ताकि कहीं कोई घटना ना हो हालाकिं सरकार ने स्कूल खुलने के आदेश दिए थे और स्कूल खुले भी मगर डर कहे या विरोध स्कूल में पढ़ने बच्चे ही नहीं पहुंचे।
दरअसल मोदी सरकार ने धारा 370 को ख़त्म करते हुए कश्मीर मामले को सुलझाने का दावा किया है। मगर नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन इस बात से सहमत नहीं है उनका कहना है कि कश्मीर का मामला सैनिक बल से नहीं बल्कि लोकतांत्रिक तरीके से मामले का हल निकल सकता है। सेन ने कश्मीर पर सरकार द्वारा उठाए गए कदम की कड़ी आलोचना की।
सेन ने कहा कि एक भारतीय के रूप में इस बात पर गर्व नहीं कर सकता कि एक लोकतांत्रिक देश की हैसियत से तमाम उपलब्धियों के बावजूद हमने इस फैसले से अपनी प्रतिष्ठा खो दी है।
जम्मू कश्मीर में ज़मीन खरीदने वाली बहस पर सेन ने कहा कि वहां के लोगों को इस बारे में फैसला लेना चाहिए। उन्होंने कहा, इसका हक सिर्फ कश्मीरियों के पास ही होना चाहिए क्योंकि ये उनकी जमीन है।
नोबेल विजेता अर्थशास्त्री ने वहां से राजनेताओं को हाउस अरेस्ट किए जाने की भी आलोचना की। उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता है कि आप वहां के लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं की आवाज सुने बिना न्याय कर पाएंगे।
बता दें कि सरकार ने अगस्त महीने की शुरुआत में जम्मू कश्मीर को मिले विशेष राज्य का दर्जा खत्म करते हुए उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया है। जिसके साथ जम्मू कश्मीर के कई राजनीतिक दलों और राजनेताओं प्रतिनिधित्व ही ख़त्म हो गया है।
यह एक राजनीतिक निर्णय है अर्थशास्त्र से क्या लेना देनाॽ