महाराष्ट्र की पुणे पुलिस ने देश के कई शहरों में एक साथ छापेमारी करते हुए पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और वकीलों को हिरासत में ले लिया।
इस गिरफ़्तारी से एक बात निकलकर सामने आ रही है कि सरकार उन सभी लोगों को निशाना बनाने में लगी है जो आदिवासियों और मध्यम वर्ग के लोगों की आवाज़ उठाते आये है।
पुलिस ने जिन सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी की है उनमें पत्रकार से लेकर वकील और सामाजिक कार्यकर्ता तक शामिल है।
पत्रकार गौतम नवलखा और मानवाधिकार वकील सुधा भारद्वाज और सामाजिक कार्यकर्ता रनेन गोंज़ाल्विस और अरुण पारेरा, कवी वरवर राव इन लोगों को भीमा कोरेगाँव में साल की शुरूआती में हुई हिंसा के मामले गिरफ्तार किया है।
इन सभी लोगों को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (Unlawful Activities Prevention Act – UAPA) के तहत गिरफ्तार किया गया है। पुलिस ने इन सभी लोगों के घरों की तलाशी लेते हुए उनके लैपटॉप मोबाइल तक को अपने कब्ज़े में लिया। पुणे पुलिस ने पहले पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं और वकीलों को हिरासत में लिए था। पुलिस ने इन्हें अर्बन नक्सल का नाम दिया है।
इस मामले पर अब सामाजिक कार्यकर्ता अरुंधती रॉय ने बीबीसी से बात करते हुए कहा है कि सरेआम लोगों की हत्या करने वालों और लिंचिंग करने वालों की जगह वकीलों, कवियों, लेखकों, दलित अधिकारों के लिए लड़ने वालों और बुद्धिजीवियों के यहां छापेमारी की जा रही हैं।
उन्होंने चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा कि इससे पता चलता है कि भारत किस ओर जा रहा है। हत्यारों को सम्मानित किया जाएगा, लेकिन न्याय और हिंदू बहुसंख्यकवाद के ख़िलाफ़ बोलने वालों को अपराधी बनाया जा रहा है। क्या ये आने वाले चुनावों की तैयारी है?
गौरतलब हो की पिछले साल 31 दिसंबर को एल्गार परिषद के एक कार्यक्रम के बाद पुणे के पास कोरेगांव – भीमा गांव में दलितों और उच्च जाति के पेशवाओं के बीच हुई हिंसा की घटना की जांच के तहत ये छापे मारे गए हैं।
बता दें कि सुरक्षा अधिकारियों ने कहा कि बीते कुछ महीनों में दो पत्र मिले हैं जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह तथा गृह मंत्री राजनाथ सिंह की हत्या की माओवादियों की साजिश का पता चलता है। छापेमारी की एक वजह बताई जा रही है।