राफेल विमान घोटाला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का ‘बोफोर्स’ बन गया है। फ़्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के बयान के बाद सड़क से सोशल मीडिया तक मोदी सरकार की आलोचना हो रही है लेकिन जो चुप है वो है ‘गोदी मीडिया’।

2014 के बाद देश की राजनीति समेत कई क्षत्रों में शब्दावलियों और अन्य चीज़ों को लेकर कई बदलाव आए हैं। इन्ही बदलावों का एक हिस्सा ये टर्म ‘गोदी मीडिया’ भी है। दरअसल, 2014 के बाद जिस तरह से कई मीडिया घरानों ने सरकार से सवाल करना बंद कर दिया है उसे ‘गोदी मीडिया’ कहा जाने लगा है।

लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाने वाला मीडिया आज सरकार के तंत्र का स्तंभ बन गया है। आज वो सरकार को गिरने से बचाने में लगा है और उसकी गोद में बैठ गया है। ये आरोप सबसे ज़्यादा मेनस्ट्रीम मीडिया और उसमें भी टेलीवीजन मीडिया पर है।

राफेल विमान को लेकर मोदी सरकार पूरी तरह बचाव की मुद्रा में है। रक्षा मंत्री से लेकर वित्त मंत्री तक इस मामले पर ब्लॉग लिखकर और प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपनी सरकार का बचाव कर रहे हैं। सरकार बुरी तरह फंस चुकी है लेकिन मीडिया नॉर्थ कोरिया और जंगल के अमर सांप दिखाने में व्यस्त है।

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इतना ही नहीं, सरकार ने फ़्रांस के पूर्व राष्ट्रपति का बयान आने के बाद कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपना पक्ष स्पष्ट नहीं किया है। क्योंकि वो संतुष्ट है कि उसके मीडिया पार्टनर ये काम कर देंगें।

बता दें, कि अभी तक मोदी सरकार का कहना था कि उसने राफेल विमान समझौते में अनिल अम्बानी की कंपनी ‘रिलायंस डिफेन्स लिमिटेड’ का नाम फ़्रांस को नहीं दिया था बल्कि फ़्रांस की कंपनी ‘डासौल्ट’ ने खुद उसे अपना पार्टनर चुना था।

लेकिन इस समझौते के समय फ़्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रांसा ओलांदे ने फ़्रांस के न्यूज़ संगठन ‘मीडियापार्ट’ के साथ इंटरव्यू में कहा है कि फ़्रांस ने रिलायंस को खुद नहीं चुना था बल्कि भारत सरकार ने रिलायंस कंपनी को पार्टनर बनाने का प्रस्ताव दिया था।

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इस मामले पर प्रधानमंत्री मोदी से सवाल पूछने के बजाय ZEE NEWS के सुधीर चौधरी ने कहा कि ‘कहीं फ़्रांस के पूर्व राष्ट्रपति तो झूठ नहीं बोल रहे हैं। क्या वो किसी के इशारे पर तो नहीं बोल रहे हैं?’

विपक्ष पर उठे सवालों पर डिबेट के सहारे अपनी आवाज़ को चाँद तक ले जाने वाले रिपब्लिक टीवी के एंकर और मालिक अर्नब गोस्वामी ने इस मुद्दे पर कोई ढंग की डिबेट नहीं की है।

दैनिक जागरण और अमर उजाला जैसे कथित प्रमुख अख़बारों ने फ़्रांस के राष्ट्रपति के बयान को पहले पन्ने पर जगह तक नहीं दी है। ये अखबार देश के सबसे ज़्यादा बिकने वाले अख़बारों में से एक हैं , उसके बावजूद इनका ये रवैय्या देश के लोकतंत्र को कमज़ोर करता नज़र आता है।

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आज हमारे देश के मीडिया संस्थानों को सोचने की ज़रूरत है। जब विदेश की मीडिया इस मामले को इतना महत्व दे रही है तो हमारे देश का मीडिया इसपर क्यों खामोश है। फ्रांस्वा ओलांद ने ये बात तभी बताया जब उनसे सवाल पूछा गया कि रिलायंस को ठेका आपने खुद दिया या मोदी सरकार ने उसका नाम प्रस्ताव में दिया था।

ये सवाल उनसे पूछना ही बताता है कि ये मामला अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी किस हद तक चर्चा में बना हुआ है। इसीलिए विदेश का मीडिया भी इसे अपने देश में उठा रहा है।

लेकिन भारतीयों के लिए ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश का मीडिया सत्ता की गोद में बैठ गया है। सत्ता पक्ष से सवाल करने के बजाय उसका बचाव कर रहा है।

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