चीन के साथ व्यापार में भारत को एक लाख करोड़ का घाटे से उठा सवाल- क्या चाइनीज झालर के विरोध तक सीमित है राष्ट्रवादियों का मेक इन इंडिया ?
नरेंद्र मोदी भारत को विश्व का सबसे सर्वश्रेष्ठ देश बनाने के वादे के साथ सत्ता में आए थे। उन्होंने देश को हर क्षेत्र में और बेहतर बनाने का वादा किया था।
साथ ही अपने ‘मेक इन इंडिया’ के नारे के साथ अन्तराष्ट्रीय व्यापर के मामले में देश का व्यापर घाटा कम करने की बात की थी। लेकिन उनके कार्यकाल में उनके हर वादे की तरह इसका भी उल्टा परिणाम आया है।
व्यापार घाटा दो देशों के बीच के आयत-निर्यात का अंतर होता है। अगर हम किसी देश से आयात ज़्यादा और उसको निर्यात कम करते हैं तो हमारा व्यापर घाटा बढ़ जाता है मतलब हमारा व्यापर उस देश के साथ नुकसान में होता है। विश्व के अधिकतम विकसित देशों का व्यापार घाटा कम रहता है क्योंकि वो आयात के मुकाबले निर्यात ज़्यादा करते हैं।
मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान हमारा व्यापार घाटा चीन के साथ बहुत ज़्यादा बढ़ गया है। चीन और पाकिस्तान के नाम पर भाजपा की सभाओं से लेकर रैलियों तक कई उग्र भाषण दिए जाते हैं। लेकिन जब सत्ता में रहकर इन देशों से जुड़ी समस्याओं को सुलझाने का समय आया तो भाजपा की सरकार कुछ नहीं कर पाई।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार, चीन के साथ भारत का व्यापर घाटा पिछले चार सालों में 14 अरब डॉलर यानि लगभग एक लाख करोड़ बढ़ गया है। जब मोदी सरकार सत्ता में आई थी तब वर्ष 2014-15 चीन के साथ भारत का सालाना व्यापर घाटा 48.48 अरब डॉलर था जो वर्ष 2017-18 में बढ़कर 62.05 अरब डॉलर हो गया है।
2017-18 में भारत का कुल कारोबारी घाटा 162 अरब डॉलर था, जिसमें से चीन के साथ कारोबारी घाटा 76 अरब डॉलर था।
2014-15 में भारत चीन को 11.93 अरब डॉलर का निर्यात कर रहा था और चीन से 60.41 अरब डॉलर का आयात कर रहा था। वहीं, वर्ष 2017-18 में स्तिथि ये है कि भारत चीन को 13.31 अरब डॉलर का निर्यात कर रहा है और चीन से 76.38 अरब डॉलर का आयात कर रहा है। ये आंकड़ें ये बात भी साबित करते हैं कि इन चार सालों में मोदी सरकार का ‘मेक इन इंडिया’ कोई कमाल नहीं कर पाया है।