केंद्र की मोदी सरकार रुपए की गिरती कीमत संभाल नहीं पा रही है। पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ना के लिए भी इसे एक कारण बताया जा रहा है। लेकिन अगर तस्वीर को थोड़ा साफ़ कर देखा जाए तो सामने आता है रुपए की कीमत में हो रही इस लगातार गिरावट से देश को इस साल एक लाख करोड़ रुपए से ज़्यादा का नुकसान हो सकता है।
इस साल अबतक रुपए की कीमत डॉलर के मुकाबले 11% घाट चुकी है। वो अपने अबतक के सबसे कम स्तर प्रति डॉलर के मुकाबले 72 रुपए पर चला गया है। अर्थशास्त्रियों के मुताबिक अभी रूपया और ज़्यादा गिर सकता है।
तो अगर इस साल रुपया प्रति डॉलर के मुकाबले 73 रहा और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दाम जो अभी 76.18 डॉलर प्रति बेरल हैं वो भी इतने ही रह गए तो भारत को इस साल कच्चे तेल के आयात के लिए 45,700 करोड़ रुपए ज़्यादा चुकाने होंगे।
ये बात अपने एक लेख में स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया (एसबीआई) की मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने कही है।
इसी तरह विदेश से भारतीय कंपनियों द्वारा लिए गए कर्ज पर नज़र डाली जाए तो ऐसी ही स्तिथि वहां बनती है। भारतीय कंपनियों ने विदेश से 2017 में 217.6 बिलियन डॉलर उधार लिए थे। अगर 2018 के शुरुआत में इस लिए हुए कर्ज का आधा भी चुका दिया जाएगा तो बाकि का कर्ज अगले साल ही दिया जाएगा।
अगर आधी रकम को भी देखा जाए तो ये भारतीय मुद्रा में 7.1 लाख करोड़ रुपए बैठती है। लेकिन ऐसा तब है जब रुपए की कीमत 2017 की तरह 65.1 रुपए प्रति डॉलर हो।
लेकिन अगर वर्तमान के दाम से इसे चुकाया जाएगा यानि रुपए की कीमत डॉलर के मुकाबले 72 तो ये कर्ज की रकम 7.8 लाख करोड़ बैठती है। मतलब 70,000 करोड़ रुपए ज्यादा।
ज्यादा चुकी जाने वाली दोनों रकम को जोड़ा जाए तो ये 1.15 लाख करोड़ रुपए होता है।