2019 लोकसभा चुनाव करीब आते जा रहे हैं। कहा जा रहा था कि अर्थव्यवस्था के मोर्चे बुरी तरह हार जाने वाली मोदी सरकार कम से कम चुनावी वर्ष में कुछ बहतर प्रदर्शन कर जनता को मनाने की कोशिश करेगी। लेकिन स्थिति पहले से बदतर होती जा रही है।

देश में पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों ने जनता की जेब खाली कर दी है। इसका असर महंगाई पर भी दिखाई दे रहा है।

वहीं, सरकार डॉलर के मुकाबले रुपये की घटती कीमत को भी नहीं संभाल पा रही है। वर्ष 2018 में रुपया लगातार छह महीना गिरा है। वर्ष 2002 के बाद पहली बार ऐसा हुआ है।

आईएलएफएस जैसी देश की सबसे बड़ी सरकारी नॉन-बैंकिंग कंपनी तमाम संकटों का सामना कर रही है। इसका असर शेयर बाज़ार पर भी खासा दिखाई दे रहा है।

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सितम्बर से अबतक निवेशक शेयर बाज़ार में ख़राब अर्थव्यवस्था के चलते 17 लाख करोड़ से ज़्यादा गँवा चुके हैं।

इस सबके चलते अब निवेशक निवेश करने से डर रहे हैं। हाल ही में आई सेंटर फॉर मोनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) की रिपोर्ट के मुताबिक, सितम्बर तिमाही (जुलाई से सितम्बर) में 1.5 लाख करोड़ रुपए की नई परियोजनाओं की घोषणा हुई है।

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पिछली चार तिमाही में आया ये सबसे कम प्रस्तावित निवेश है। इस से पहले पिछले चार तिमाही में औसतन 2.3 लाख करोड़ रुपए का प्रस्तावित निवेश आया था। मतलब इस तिमाही में अर्थव्यवस्था को 80,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।

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