पिछले महीने की 13 तारीख को न्यूज़ एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से रक्षामंत्री को कोट करते हुए ट्वीट किया गया, ‘UPA के शासनकाल में 126 राफेल जेट का सौदा इसलिए नहीं हो पाया था क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी हिंदुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड HAL में इसे बनाने की क्षमता नहीं थी।’

इसके साथ ही रक्षा मंत्री ने यह भी कहा कि हमारी सरकार HAL की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए कार्य कर रही है। रक्षा मंत्री के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर बीजेपी को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा।

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यूज़र्स ने लिखा कि जिस HAL को रक्षा मंत्री राफ़ेल जेट बनाने में असक्षम बता रही हैं उसने MiG-21, MiG-27, जैगुआर, हॉक, सुखोई-30, डोर्नियर 228 बनाए हैं। यह भारत के सबसे बेहतरीन लड़ाकू विमान हैं।

जेएनयू के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने भी रक्षा मंत्री के बयान पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने बयान को शर्मनाक बताते हुए ट्वीट किया-

“देश की रक्षा मंत्री ने 18,000 करोड़ रुपये के रिकॉर्ड टर्नओवर वाली सरकारी कंपनी HAL को मोदी जी के मित्र अंबानी के बिज़नेस की रक्षा करने के लिए राफ़ेल बनाने में असक्षम बता दिया था।

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सरकार में अजीब लोग हैं, वेतन लेते हैं जनता के पैसे से और गुण गाते हैं अंबानी के शर्म उनको मगर नहीं आती”।

क्या है विवाद

राफेल एक लड़ाकू विमान है। इस विमान को भारत फ्रांस से खरीद रहा है। कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि मोदी सरकार ने विमान महंगी कीमत पर खरीदा है जबकि सरकार का कहना है कि यही सही कीमत है। ये भी आरोप लगाया जा रहा है कि इस डील में सरकार ने उद्योगपति अनिल अंबानी को फायदा पहुँचाया है।

बता दें, कि इस डील की शुरुआत यूपीए शासनकाल में हुई थी। कांग्रेस का कहना है कि यूपीए सरकार में 12 दिसंबर, 2012 को 126 राफेल विमानों को 10.2 अरब अमेरिकी डॉलर (तब के 54 हज़ार करोड़ रुपये) में खरीदने का फैसला लिया गया था। इस डील में एक विमान की कीमत 526 करोड़ थी।

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इनमें से 18 विमान तैयार स्थिति में मिलने थे और 108 को भारत की सरकारी कंपनी, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल), फ्रांस की कंपनी ‘डसौल्ट’ के साथ मिलकर बनाती। अप्रैल 2015, में प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी फ़्रांस यात्रा के दौरान इस डील को रद्द कर इसी जहाज़ को खरीदने के लिए में नई डील की।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नई डील में एक विमान की कीमत लगभग 1670 करोड़ रुपये होगी और केवल 36 विमान ही खरीदें जाएंगें। क्योंकि 60 हज़ार करोड़ में 36 राफेल विमान खरीदे जा रहे हैं। नई डील में अब जहाज़ एचएएल की जगह उद्योगपति अनिल अंबानी की कंपनी ‘रिलायंस डिफेंस लिमिटेड’ डसौल्ट के साथ मिलकर बनाएगी।

जबकि अनिल अम्बानी की कंपनी को विमान बनाने का कोई अनुभव नहीं है क्योंकि ये कंपनी राफेल समझौते के मात्र 12 दिन पहले बनी है। साथ ही टेक्नोलॉजी ट्रान्सफर भी नहीं होगा जबकि पिछली डील में टेक्नोलॉजी भी ट्रान्सफर की जा रही थी।

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