देश के करोड़ों लोगों की गाढ़ी कमाई के बल पर लाखों करोड़ रुपये के मोटे भंडार पर बैठी भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) जिसे अर्थशास्त्री एक ‘दुधारु गाय’ भी कहते है मगर अब उसे भी दूसरी तिमाही में 57,000 करोड़ की चपत लगी है।
मोदी सरकार दूसरी बार सत्ता पर तो काबिज़ हो गई, मगर इसी सरकार में बड़ी-बड़ी सरकारी कंपनियों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। मसलन बीएसएनएल, एचएएल और एयरइंडिया पहले ही आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा है। अब इस लिस्ट में एक और नाम LIC भी जुड़ गया है।
दरअसल पिछले ढाई महीने से भारतीय जीवन बीमा निगम को शेयर बाजार में हुए निवेश से इस वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही (जुलाई से सितंबर में अब तक) में ही 57,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। ऐसा इसलिए क्योंकि LIC ने जिन भी कंपनियों में निवेश किया है उनमें से 81 फीसदी के बाजार मूल्य में गिरावट आई है।
जिन कंपनियों में LIC ने इन्वेस्ट किया हुआ उनमें स्टेट बैंक ऑफ इंडिया SBI, ओएनजीसी, एलऐंडटी, कोल इंडिया, एनटीपीसी, इंडियन ऑयल और रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसी बड़ी कंपनियों का नाम शामिल है।
बिजनेस स्टैंडर्ड के अनुसार जून तिमाही के अंत तक शेयर बाजार में लिस्टेड कंपनियों में एलआईसी का निवेश मूल्य 5.43 लाख करोड़ रुपये का था, लेकिन अब यह घटकर महज 4.86 लाख करोड़ रुपये रह गया है। इस तरह महज ढाई महीने एलआईसी के शेयर बाजार में निवेश को 57,000 करोड़ रुपये की चपत लग चुकी है।
एलआईसी को सरकार के विनिवेश एजेंडा को पूरा करने के लिए सरकारी कंपनियों के मुक्तिदाता की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले एक दशक में सार्वजनिक कंपनियों में एलआईसी का निवेश चार गुना हो गया है। आरबीआई के अनुसार साल 2019 तक एलआईसी ने कुल 26.6 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया है
जिसमें से अकेले पब्लिक सेक्टर की कंपनियों में 22.6 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया गया है, सिर्फ 4 लाख करोड़ रुपये निजी क्षेत्र में लगाए गए हैं।
वहीं अगर पब्लिक सेक्टर की बात करें तो एलआईसी का कुल निवेश का हिस्सा एक दशक पहले के 75 फीसदी की तुलना में अब 85 फीसदी हो चुका है।
इसके बाद भी अगर मोदी सरकार ये दावा करती है कि अर्थव्यवस्था में सबकुछ कुशल मंगल है तो इसमें ज़रूर विचार किये जाने की ज़रूरत है।
पिछले दिनों रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने मोदी सरकार को 24.8 अरब डॉलर यानी लगभग 1.76 लाख करोड़ रुपए लाभांश और सरप्लस पूंजी के तौर पर देने का फ़ैसला किया था। अब ऐसे हाल में अगर एलआईसी को ही अकेले 57 हज़ार करोड़ का नुकसान हो रहा है तो इसकी भरपाई कौन करेगा?कहीं न कहीं सरकार को ही इसकी भरपाई करनी होगी और सरकार इसकी भरपाई कहीं ना कहीं से जनता से ही वसूलेगी।
Pagal, jo share becha hi nahi, usme ghata(loss) kaise hota hai??
Thoda knowledge badha bhai!
Modi bhagao L I C bachao
L.I.C. KA INVESTMENT KABHI BHI POLICY HOLDER KO NUKSHAN NAHI KAREGA.
Aaoho
Akho yah kiya huaa
मूलधन मैं 57000 cr ka नुकसान तो Customer का ब्याज कहा जाएगा
In coming years the shares rate will increased and Lic will run into profit
This is totally Rubbish news dont post such kind of false post
You should post with proper data
The real problem is LIC was forced to bail out so many companies & banks during 2014-19 by investing lacs of crores, knowing well that there may not be positive outcome.
It was bound to happen
You paid person, first learn economics of life insurance and than write. How much money you got from pvr players
Before coming to any Negative conclusions about LIC and it’s Rich Legacy we need understand a few things about LIC strength etc. 👇 Rest in hindi 👇
किसी भी वार्तालाप में LIC को डालने से पहले या किसी भी संभावित घटना के घटने के बारे में जिक्र करते वक्त LIC का नाम लेने से पहले, हमें LIC को और उसके स्ट्रक्चर को समझना पड़ेगा l
आज की तारीख में *LIC का “लाइव फंड” करीब करीब “35 लाख करोड़”* का है, *LIC के पास सारे असेट्स,करीब करीब “36 लाख करोड़”* के हैं ।
आज की तारीख में *हर सरकारी संस्था के अंदर शेरहोल्डिंग में LIC का शेर होता है*
जैसे
मारुति उद्योग 13%, अलाहाबाद बैंक 13%, कॉरपोरेशन बैंक 13%, एक्सिस बैंक 13%,
कोई भी ऐसी सरकारी संस्था नहीं है जिसकी शेरहोल्डिंग में LIC का हाथ नहीं हो,
ऐसे में जब LIC पूरे मार्केट को संभाल रही है तो कभी भी,यदि किसी भी संस्था के दिवालिया होने के बात होती है या डिसइनवेस्टमेंट की बात होती है और सरकार यह कहती है कि हम LIC को बुला रहे हैं, इसकी रेस्क्यू के लिए तो
दो घटनाएं घटती हैं
*एक-मार्केट में किसी के पास भी इतना पैसा नहीं होता कि वह संस्था को खरीद ले l*
और
*दूसरे -अगर उस संस्था की कीमत मार्केट 10,000 करोड़ रुपए लगाता है तो उसमें बहुत सारे ऐसे Assets होते हैं जिनकी बुक वैल्यू कम होती है और उनकी टोटल असेट्स बहुत ज्यादा कीमत के होते हैं l*
तो LIC ऐसे में जब भी इन्वेस्टमेंट करती है तो एलआईसी को बिल्कुल भी घाटा नहीं होता,
चाहे वह आईआईएलएफ(IILF) का इशू हो या फिर आईडीबीआई बैंक(IDBI Bank) का इशू हो,
सस्ती दरों पर LIC के द्वारा की गई खरीदारी आगे जाकर LIC को और ज्यादा मुनाफा देती है l
लेकिन क्योंकि हर *फाइनेंशियल मार्केट में बार-बार एलआईसी का नाम लिया जाता है तो बहुत सारे प्राइवेट प्लेयर्स चाहे वह बैंकिंग के हो या इंश्योरेंस के हो, उनको लगता है कि अगर इस संस्था की शाख, ढीली हो जाए तो हमारे पास भी कुछ पैसा आने लगेगा*।
1999 में आईआरडीए (IRDA) बना लेकिन 20 सालों के बाद आज भी *नव व्यवसाय(Fresh Insurance Market) में LIC का मार्केट शेयर करीब 75% है* यानी *25% में बाकी सारी प्राइवेट कंपनियां,सबसे बड़ी कंपनी आईसीआईसीआई प्रू का मार्केट शेयर मात्र 3.8% है ।
180 देशों में बीमें का कारोबार होता है और बहुत सारे देशों में,विदेशों से कंपनियों ने जाकर काम शुरू किया ।
लेकिन ऐसा अनोखा रिकॉर्ड सिर्फ भारत के अंदर ही है, जहां पर मूल कंपनी अपना मार्केट शेयर बचाने में इतने लंबे समय तक कामयाब रही है ।
तो आप सोच सकते हैं कि लोगों को कितना भरोसा है LIC पर l
मीडिया के बारे में तो आप जानते ही हैं कि इनका किस भाषा में उनका व्याख्यान किया जाता है,
एक बार संसद में सवाल उठा कि LIC ने सॉल्वेंसी मार्जिन (Solvency Margin) के पैसे जमा नहीं कराए l
LIC ने 20000 करोड रूपया जमा कराया,
17 सालों से उस पैसे की आवश्यकता नहीं पडी है, वहीं फंड अपने आप में बहुत बड़ा हो गया है ।
एलआईसी जब चाहे तब उसका इस्तेमाल कर सकती है ।
दोस्तों बिल्कुल भी घबराने की आवश्यकता नहीं है LIC में
पॉलिसी होल्डर,
एजेंट्स,
सभी लोग बिल्कुल से सुरक्षित हैं, यहां पर जमा हुआ सारा पैसा एकदम सुरक्षित है ।
No negative
Many mutual funds and others are losing market Price value, the same thing may be with LIC.
થોડા સમયથી વ્યક્તિગત તેમજ સંસ્થાગત ભાવ ઘટાડા નો સામનો કરે છે, તેમ એલ આ સી
ને પણ પ્રશ્નો હોય શકે.
What a rubbish news!
First understand the difference between loss and notional loss. Also write about the strength of LIC’s holding capacity.
Paid News.
Rubbish news
Ajj desh jo bhi Mandi he iske liye kebal modi govt ko kasurwar kahena galat hoga.pichle sarkar ka bhi bahut bada role he.jabki abhi modi sarkar chal raha he naturally modi govt ko kuch bada karna padega.aur sabko biswas he is sankat ko modiji bakhubi handle karenge.bahesh ke liye abhi bahut kuch he.modiji acha desh chala rahe hen.samasya aya he kuch samay lagega sab kuch thik ho jayega.bhorasa rakhna padega.Dhanyabad.
किसी भी वार्तालाप में LIC को डालने से पहले या किसी भी संभावित घटना के घटने के बारे में जिक्र करते वक्त LIC का नाम लेने से पहले, हमें LIC को और उसके स्ट्रक्चर को समझना पड़ेगा l
आज की तारीख में *LIC का “लाइव फंड” करीब करीब “35 लाख करोड़”* का है, *LIC के पास सारे असेट्स,करीब करीब “36 लाख करोड़”* के हैं ।
आज की तारीख में *हर सरकारी संस्था के अंदर शेयर होल्डिंग में LIC का शेयर होता है*
जैसे
मारुति उद्योग 13%, अलाहाबाद बैंक 13%, कॉरपोरेशन बैंक 13%, एक्सिस बैंक 13%,
कोई भी ऐसी सरकारी संस्था नहीं है जिसकी शेयर होल्डिंग में LIC का हाथ नहीं हो,
ऐसे में जब LIC पूरे मार्केट को संभाल रही है तो कभी भी,यदि किसी भी संस्था के दिवालिया होने के बात होती है या डिसइनवेस्टमेंट की बात होती है और सरकार यह कहती है कि हम LIC को बुला रहे हैं, इसकी रेस्क्यू के लिए तो
दो घटनाएं घटती हैं
*एक-मार्केट में किसी के पास भी इतना पैसा नहीं होता कि वह संस्था को खरीद ले l*
और
*दूसरे -अगर उस संस्था की कीमत मार्केट 10,000 करोड़ रुपए लगाता है तो उसमें बहुत सारे ऐसे Assets होते हैं जिनकी बुक वैल्यू कम होती है और उनकी टोटल असेट्स बहुत ज्यादा कीमत के होते हैं l*
तो LIC ऐसे में जब भी इन्वेस्टमेंट करती है तो एलआईसी को बिल्कुल भी घाटा नहीं होता,
चाहे वह आईआईएलएफ(IILF) का इशू हो या फिर आईडीबीआई बैंक(IDBI Bank) का इशू हो,
सस्ती दरों पर LIC के द्वारा की गई खरीदारी आगे जाकर LIC को और ज्यादा मुनाफा देती है l
लेकिन क्योंकि हर *फाइनेंशियल मार्केट में बार-बार एलआईसी का नाम लिया जाता है तो बहुत सारे प्राइवेट प्लेयर्स चाहे वह बैंकिंग के हो या इंश्योरेंस के हो, उनको लगता है कि अगर इस संस्था की साख , ढीली हो जाए तो हमारे पास भी कुछ पैसा आने लगेगा*।
1999 में आईआरडीए (IRDA) बना लेकिन 20 सालों के बाद आज भी *नव व्यवसाय(Fresh Insurance Market) में LIC का मार्केट शेयर करीब 75% है* यानी *25% में बाकी सारी प्राइवेट कंपनियां,सबसे बड़ी कंपनी आईसीआईसीआई प्रू का मार्केट शेयर मात्र 3.8% है ।
180 देशों में बीमें का कारोबार होता है और बहुत सारे देशों में,विदेशों से कंपनियों ने जाकर काम शुरू किया ।
लेकिन ऐसा अनोखा रिकॉर्ड सिर्फ भारत के अंदर ही है, जहां पर मूल कंपनी अपना मार्केट शेयर बचाने में इतने लंबे समय तक कामयाब रही है ।
तो आप सोच सकते हैं कि लोगों को कितना भरोसा है LIC पर l
मीडिया के बारे में तो आप जानते ही हैं कि इनका किस भाषा में उनका व्याख्यान किया जाता है,
एक बार संसद में सवाल उठा कि LIC ने सॉल्वेंसी मार्जिन (Solvency Margin) के पैसे जमा नहीं कराए l
LIC ने 20000 करोड रूपया जमा कराया,
17 सालों से उस पैसे की आवश्यकता नहीं पडी है, वहीं फंड अपने आप में बहुत बड़ा हो गया है ।
एलआईसी जब चाहे तब उसका इस्तेमाल कर सकती है ।
इसलिए हमेशा कहिए LIC है तो कंही ओर क्यों जाना।
Informative
LIC, will have to go with the trend because of the use based on as government will and may not be as the will and planning of LIC administration, just similar to any other government institution. Let it go.
Jab LIC ka ho Sath to fikra ki Chhodo Baat
Dekhne ka nazariya galat hai
Jo 70 salme nahi hua wo 5 salme hua.Jai ho chokidar mahachor hai.
Is yeah to Desh bik jayga
After That LIC of India had gained 143000 crore boltaup क्यों चुप हो गया?
Clear it both the way….
Desh gazaar muli ki tarah chal raha hai.
Corprate tax kam
Gst lagoo hai
Note band naye ayenge
Triple talak lelo
America main modi trump ka election
Prachar karne gaye hai.
Yehi haal kejriwal ka bhi hai. Macchar , free metro , odd even , free water , cctv
Congress ke jail main hai
Desh chup behte aur barbaad hota dekhe
Share market mei dab doob rahe hai toh lic kaise bachegi
Mkt condition aisi hi hai. Mai khuf 5 lac ke nuksaan mei hoo
All the scams e.g. NBFCs & banks are taking their toll on this time-tested cash cow. Situation is extremely delicate.