लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। यही वजह है कि मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। लेकिन मौजूदा वक्त में भारतीय मीडिया का एक बड़ा हिस्सा गोदी मीडिया हो चुका है। गोदी मीडिया यानी सत्ता की गोदी में बैठी मीडिया।
एक जिम्मेदारी पत्रकार का काम होता है आम जनता की आवाज बनना, उनकी समस्याओं को सामने लाना और सरकार से सवाल करना। लेकिन गोदी मीडिया के पत्रकार जनता की नहीं सत्ता की आवाज होते हैं। सत्तानशीं जितना कहते हैं गोदी मीडिया के पत्रकार उतना ही दोहराते हैं। ऐसे में क्यों इन पत्रकारों कों सरकारी पत्रकार घोषित कर दिया जाए।
आज तक के एंकर रोहित सरदाना में एक सरकारी पत्रकार के सारे गुण हैं। जैस- सत्ता से सवाल ना पूछना, सत्ता की जी हुजूरी करना, विपक्ष के सवालों को गलत बताना, विपक्ष से सवाल पूछना, किसी भी मुद्दें को हिंदू बनाम मुस्लिम बनाना… आदि। ऐसे में क्या रोहित सरदाना को सरकारी पत्रकार नहीं कहा जाना चाहिए?
रोहित सरदाना का ट्विटर टाइमलाईन चीख चीख कर कह रहा है कि वो ‘सरकारी पत्रकार’ हैं। रोहित के 99% ट्वीट सरकार के सुर से सुर मिला रहे होते हैं। देखिए…
एमजे अकबर पर 19 महिलाओं ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है। बीजेपी पहले तो इस मुद्दें पर मौन रहती है फिर पांच दिन बाद अकबर का इस्तीफा होता है।
लेकिन पार्टी में वो अब भी बने हुए हैं, राज्यसभा में अब भी हैं। ऐसे में सवाल बीजेपी से बनता है लेकिन रोहित सरदाना कांग्रेस पर तंज कस रहे हैं। ऐसे में इन्हें क्यों न ‘सरकारी पत्रकार’ कहा जाए?
एम जे अकबर का इस्तीफ़ा हुआ. प्यादा शहीद करा के कांग्रेस ने केंद्र के वज़ीर को निपटा दिया!
— रोहित सरदाना (@sardanarohit) October 17, 2018
यूपी में जमकर फर्जी एनकाउंटर हो रहे हैं। आलम ये है कि यूपी पुलिस बंदुक की जगह मुंह से भी ठांय ठांय कर रही है। योगी आदित्यनाथ के काम करने से ज्यादा नाम बदलने पर ध्यान दे रहे हैं।
लेकिन रोहित सरदाना सीएम योगी की इसलिए तारीफ कर रहे हैं क्योंकि वो पार्टी कार्यालय में ‘कन्या पूजन’ करा रही है। एक पत्रकार के तौर पर रोहित सरदाना धर्म और राजनीति के मिक्सचर की आलोचना करनी चाहिए लेकिन रोहित ‘तेरा धर्म मेरा धर्म’ खेल रहे हैं। ऐसे में इन्हें क्यों न ‘सरकारी पत्रकार’ कहा जाए?
कांग्रेस भी करेगी 'कन्या पूजन', पार्टी कार्यालय में होगा फलाहार. अच्छी पहल है, स्वागत होना चाहिए! इफ़्तार पार्टी देने की होड़ में लगने वाली और पार्टियों को भी सही मायनों में ‘सेक्युलर’ होने के संकेत देने चाहिएँ. https://t.co/Nu8IFVsk4q via @jansatta
— रोहित सरदाना (@sardanarohit) October 17, 2018
योगी सरकार इलाहाबाद का नाम प्रयागराज कर रही है। एक पत्रकार के तौर पर ये पूछा जाना चाहिए कि सरकार आखिर नाम क्यों बदल रही है? इससे राज्य को फायदा होने वाला है?
लेकिन रोहित सरदाना सवाल पूछने की जगह सरकार का पक्ष मजबूत कर रहे हैं। सत्ताधारी बीजेपी के इंट्रेस्ट के हिसाब से इस मुद्दें को भी हिंदू बनाम मुस्लिम का चश्मा पहना रहे हैं।
बम्बई मुंबई बन गया. मद्रास चेन्नई हो गया. बैंगलोर बंगलुरु हुआ. कलकत्ता कोलकाता कहलाने लगा. सेक्युलरिज़्म की सांसें ‘इलाहबाद’ के ‘प्रयागराज’ होने पर ही क्यों उखड़ीं?
— रोहित सरदाना (@sardanarohit) October 16, 2018
ऐसे में इन्हें क्यों न रोहित सरदाना को ‘सरकारी पत्रकार’ कहा जाए?
Sach chubhata hai