यूपीए सरकार के फैसलों को गलत बताकर रद्द करने वाली मोदी सरकार अब फिर से वहीं फैसले ले रही है। मोदी सरकार वैसा ही विमान समझौता फिर से कर रही है जिसे उसने रद्द कर दिया था। सरकार के इस नए फैसले ने कथित राफेल घोटाले को बड़ा आधार दे दिया है।

भारतीय वायुसेना की 110 फाइटर जेट्स की ज़रूरत को पूरा करने के लिए सरकार ने शुक्रवार को टेंडर प्रक्रिया शुरू कर दी। इसके लिए वायुसेना ने दुनियाभर की बड़ी एयरक्राफ्ट कंपनी से आवेदन मांगे हैं। आईएएफ ने वेबसाइट पर कंपनियों के लिए ‘रिक्वेस्ट फॉर इन्फॉर्मेशन’ (आरएफआई) जारी किए हैं।

क्या है सवाल?

बता दें, कि मोदी सरकार से पहले यूपीए सरकार ने फ्रांस के साथ 126 लड़ाकू विमान खरीदने की डील की थी। मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही इस डील को खत्म कर दिया। इसके बजाय सरकार ने सितंबर 2016 में फ्रांस के साथ करीब 59 हजार करोड़ रूपए में 36 राफेल एयरक्राफ्ट की डील की थी।

इस नई डील में भारत को राफेल विमान पहले से ज़्यादा महंगे खरीदने पड़े और इसमें अनिल अम्बानी की कंपनी को बड़ा फायदा हुआ।

सवाल ये है कि जब भारतीय वायुसेना को नए लड़ाकू विमानों की इतनी ज़रूरत थी तो मोदी सरकार ने यूपीए के समय का पुराना समझौता क्यों रद्द किया? जब वो रद्द हो गया था तो अब वैसा ही विमान खरीद का फैसला फिर से क्यों लिया गया?

इस सब के आधार पर ये आशंका ज़ाहिर होती है कि क्या पुरानी डील इसीलिए रद्द की गई थी क्योंकि उसमें अनिल अम्बानी को कोई फायदा नहीं हो रहा था? अब जब अनिल अम्बानी के फायदे वाले डील पूरी हो चुकी है तो सरकार फिर से पुरानी डील की तरह 110 लड़ाकू विमानों की खरीद करना चाहती है।

क्या है राफेल घोटाला?

राफेल एक लड़ाकू विमान है। इस विमान को भारत फ्रांस से खरीद रहा है। कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि मोदी सरकार ने विमान महंगी कीमत पर खरीदा है जबकि सरकार का कहना है कि यही सही कीमत है। ये भी आरोप लगाया जा रहा है कि इस डील में सरकार ने उद्योगपति अनिल अम्बानी को फायदा पहुँचाया है।

बता दें, कि इस डील की शुरुआत यूपीए शासनकाल में हुई थी। कांग्रेस का कहना है कि यूपीए सरकार में 12 दिसंबर, 2012 को 126 राफेल राफेल विमानों को 10.2 अरब अमेरिकी डॉलर (तब के 54 हज़ार करोड़ रुपये) में खरीदने का फैसला लिया गया था। इस डील में एक विमान की कीमत 526 करोड़ थी।

इनमें से 18 विमान तैयार स्थिति में मिलने थे और 108 को भारत की सरकारी कंपनी, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल), फ्रांस की कंपनी ‘डासौल्ट’ के साथ मिलकर बनाती। 2015 में मोदी सरकार ने इस डील को रद्द कर इसी जहाज़ को खरीदने के लिए नई डील की।

नई डील में एक विमान की कीमत लगभग 1670 करोड़ रुपये होगी और केवल 36 विमान ही खरीदें जाएंगें। नई डील में अब जहाज़ एचएएल की जगह उद्योगपति अनिल अम्बानी की कंपनी बनाएगी। साथ ही टेक्नोलॉजी ट्रान्सफर भी नहीं होगा जबकि पिछली डील में टेक्नोलॉजी भी ट्रान्सफर की जा रही थी।

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