फंसे हुए कर्जों (एनपीए) इस देश के बैंकों की सबसे बड़ी समस्या बनता जा रहा है। इस कारण देश के बैंकों को सालाना हज़ारों करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है और साथ ही वो बर्बादी की ओर अग्रसर हो रहे हैं।

लेकिन इसको लेकर पूर्व आरबीआई गवर्नर ने जो खुलासा किया है उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी पर कई सवाल उठ सकते हैं।

एन.पी.ए बैंकों का वो लोन होता है जिसके वापस आने की उम्मीद नहीं होती, इस कर्ज़ में 90% से ज़्यादा हिस्सा उद्योगपतियों का है। अक्सर उद्योगपति बैंक से कर्ज़ लेकर खुद को दिवालिया दिखा देते हैं और उनका लोन एन.पी.ए में बदल जाता है।

यही उस लोन के साथ होता है जिसे बिना चुकाए नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे लोग देश छोड़कर भाग जाते हैं।

रघुराम राजन ने कहा है कि बैंकिंग धोखाधड़ी से जुड़े बहुचर्चित मामलों की सूची उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री कार्यालय को कार्रवाई के लिए सौंपी गई थी। राजन ने संसद की एक समिति को लिखे पत्र में यह बात कही है। आकलन समिति के चेयरमैन मुरली मनोहर जोशी हैं।

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राजन ने कहा कि दुर्भाग्यवश किसी भी एक बड़े घोटालेबाज की गिरफ्तारी नहीं हो सकी, इस वजह से ऐसे मामलों में कमी नहीं आ सकी।

रघुराम राजन के इस खुलासे के बाद पीएम मोदी पर ज़्यादा सवाल इसलिए उठते हैं क्योंकि राजन सितंबर 2013 से सितंबर 2016 तक आरबीआई के गवर्नर थे।

अपनी रिपोर्ट में राजन ने कहा है कि बैंक अधिकारियों के अति उत्साह, सरकार की निर्णय लेने की प्रक्रिया में सुस्ती तथा आर्थिक वृद्धि दर में नरमी डूबे कर्ज के बढ़ने की प्रमुख वजह है।

राजन ने संसदीय समिति से कहा, “जब मैं गवर्नर था तब आरबीआई ने फ्रॉड मॉनिटरिंग का एक विभाग बनाया था ताकि छानबीन करने वाली एजेंसी को फ्रॉड केस की जानकारी उपलब्ध कराई जा सके।

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मैंने तब पीएमओ को हाई प्रोफाइल फ्रॉड केस की लिस्ट भेजी थी और उनमें से किसी एक या दो घोटालेबाज की गिरफ्तारी के लिए कॉर्डिनेशन की गुजारिश की थी। मुझे नहीं मालूम कि उस बारे में क्या प्रगति हुई है। यह ऐसा मामला है जिस पर तत्परता से कार्रवाई होनी चाहिए थी।”

गौरतलब है कि लगातार सामने आ रहे बैंक घोटालों के चलते पिछले कुछ महीनों से बैंकों का घाटा बढ़ता जा रहा है। देश के 21 सरकारी बैंकों में से 15 को 2017-18 की चौथी तिमाही (जनवरी से मार्च) में 47000 करोड़ से ज्यादा का घाटा हुआ है।

सरकारी बैंकों के एन.पी.ए में भी पिछले कुछ सालों में इसी तरह का बढ़ोतरी देखी गई है। रिज़र्व बैंक ने बताया है कि मार्च 2018 में एनपीए 10.40 लाख करोड़ पहुँच चुका है। जबकि 2013-14 में ये 2 लाख 40 हज़ार करोड़ था। देश में लगभग 90% एन.पी.ए सरकारी बैंकों का ही है।

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