कृष्णकांत

उद्योगपतियों ने खुदकुशी नहीं की थी, लेकिन सरकार ने कॉरपोरेट को 1.45 लाख करोड़ की राहत दी है. इसी सरकार ने पिछले साल गंगाजल लेकर कसम खाई थी कि किसानों का कर्ज माफ नहीं कर सकते. यह राहत ऐसे समय दी गई है ​जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हजारों किसान पैदल मार्च करके दिल्ली पहुंचे हैं.

​राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो का यह आंकड़ा किसे नहीं पता है कि देश में 1995 से लेकर 2015 तक साढ़े तीन लाख किसान कर्ज जैसी समस्याओं के चलते खुदकुशी कर चुके हैं. सरकार ने इसका उपाय करने की जगह किसान आत्मह त्याओं का आंकड़ा देना बंद कर दिया है. 2016 से किसान आत्मह त्या का कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. लेकिन पिछले वर्षों के औसत के आधार पर आप कह सकते हैं कि किसान आत्मह त्याओं का आंकड़ा चार लाख पार कर गया होगा.

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भारतीय किसान संगठन के नेतृत्व में किसान मजदूर अधिकार यात्रा गुरुवार को नोएडा पहुंच गई है. सुबह ये दिल्ली में प्रवेश करके यह यात्रा किसान घाट पर खत्म होनी है. जाहिर है ​कि किसानों को दिल्ली में प्रवेश से पहले रोक दिया जाएगा और झुनझुना पकड़ाकर वापस भेज दिया जाएगा, जैसा पहले भी हो चुका है.

किसानों की मांग वही पुरानी है. कर्ज माफ हो. बिजली पानी सस्ता दिया जाए. प्रदूषित नदियों को साफ किया जाए. किसानों को पेंशन दी जाए. स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू हो.

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भारतीय किसान संगठन के अध्यक्ष ठाकुर पूरन सिंह का कहना है कि किसान पीड़ित और दुखी हैं. सरकार हमारी मांगों पर कभी ध्यान नहीं देती, न ​कृषि को कोई राहत देती है. यह सरकार किसानों की नहीं बल्कि पूंजीपतियों की है. आज किसान सड़क पर है लेकिन सरकार सुनने को तैयार नहीं है.

मीडिया में आप इसकी चर्चा कभी नहीं सुनेंगे. आप अभी टीवी खोलेंगे तो प्राइम टाइम में हिंदू मुसलमान चल रहा होगा.

( ये लेख कृष्णकांत की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है )

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