31 अक्टूबर को सरदार वल्लभभाई पटेल की 143वीं जयंती है। इस मौके पर पीएम मोदी गुजरात में बने ‘स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी’ का लोकर्पण करेंगे। ‘स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी’ के नाम से बनी सरदार पटेल की ये मूर्ति दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति है। 182 मीटर ऊंची इस मूर्ति को बनाने में करीब 3000 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं।

गुजरात के शहरी क्षेत्रों में इस मूर्ति के बनने से लोग बहुत उत्साहित हैं। लेकिन मूर्ति के आसपास के गांवों के हजारों आदिवासी ‘स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी’ का विरोध कर रहे हैं। 31 अक्टूबर यानी मूर्ति के लोकर्पण के दिन करीब 75,000 आदिवासी एक साथ प्रदर्शन करने की तैयारी में हैं।

इन आदिवसियों का कहना है कि वो गुजरात के महान बेटे सरदार पटेल के खिलाफ नहीं हैं। बल्कि सरकार द्वार किए जा रहे दमन और शोषण के खिलाफ हैं। विरोध कर रहे आदिवासियों का कहना है कि गुजरात सरकार ने विकास ने नाम पर हमारी जमीन तो ले ली लेकिन मुआवजा नहीं दिया। और न ही पुनर्वास करवाया।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक स्टैच्यू ऑफ यूनिटी प्रोजेक्ट की वजह से 72 गांवों में से 32 गांव सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। इनमें से 19 गांवों में तथाकथित रूप से पुनर्वास नहीं हुआ है। केवड़िया कॉलोनी के छह गांव और गरुदेश्वर ब्लॉक के सात गांवों में सिर्फ मुआवज़ा दिया गया है। जमीन और नौकरी जैसे वादों को अभी तक पूरा नहीं किया गया है।

आदिवासी नेता प्रफुल वसावा और छोटुभाई वसावा ने इस परियोजना के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया है। छोटुभाई वसावा का कहना है कि ‘सरदार पटेल की मूर्ति तो बहाना है। सरकार आदिवासियों, किसानों से पुरखों की जमीन हड़प कर उधोगपतियों को देना चाहती है। यह सरकार कुछ भी करके देश से किसानों को खत्म करना चाहती है। ताकि चंद उधोगपति घराने इस देश पर राज करें।’

छोटुभाई वसावा ने ‘स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी’ के आसपास के 10 से ज्यादा गावों के सरपंचों द्वारा हस्ताक्षर किए दस्तावेजों को फेसबुक पर अलोड किया है। वसावा के मुताबिक इन सभी गांव के सरपंच नहीं चाहते कि 31 अक्टूबर को पीएम मोदी सरदार पटेल की मूर्ति का लोकर्पण करें।

#StatueOfUnity की आसपास की ग्राम पंचायत के सरपंचो ने खुद हस्तक्षर के साथ कहा है की 31 ऑक्टोबर को PM नर्मदा डेम पर नहीं आए#StatueOfDisplacement #StatueOfUnity #Farmers_Protest #TribalFarmer

छोटुभाई वसावा ಅವರಿಂದ ಈ ದಿನದಂದು ಪೋಸ್ಟ್ ಮಾಡಲಾಗಿದೆ ಶನಿವಾರ, ಅಕ್ಟೋಬರ್ 27, 2018

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने सरकार को सलाह देते फेसबुक पर लिखा है ‘सरदार पटेल देश के किसान नेता थे। उनकी याद में एक मूर्ति बनी है। अच्छी बात है। लेकिन इसके लिए आदिवासी किसानों की जमीन छीन ली गई। इस वजह से आदिवासी किसान इसका विरोध कर रहे हैं।

छोटुभाई वसावा ने उनकी कमान संभाल ली है। विरोध इतना तीखा है कि सरकार मूर्ति से जुड़े पोस्टर नहीं लगा पा रही है। मजबूरी में सरकार ने पोस्टर्स में धरती आबा बिरसा मुंडा की फोटो लगा दी। ताकि लोग पोस्टर को न हटाएं। लोगों ने इसका भी उपाय खोज लिया। सरकार को चाहिए कि उन आदिवासियों का पुनर्वास करे और उचित मुआवजा और सरकारी नौकरी उन्हें दे।’

बता दें कि ‘स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी’ के लोकार्पण कार्यक्रम में सरदार पटेल के एकमात्र जीवित पौत्र गौतम पटेल और उनकी पत्नी नंदिनी शामिल नहीं होंगी।

मूर्ति को लेकर क्या सोचते थे सरदार पटेल?

मूर्ति को लेकर सरदार पटेल के जो विचार थे, उस नजरिए से देखा जाए तो अगर सरदार पटेल जिंदा होते तो शायद खुद ‘स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी’ का विरोध कर रहे होते। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, महात्मा गांधी की हत्या के ठीक दो सप्ताह बाद पटेल ने अंग्रेजी में एक लेख लिखा।

इस लेख में पटेल लिखते हैं कि ‘गांधीजी के नाम पर मंदिर खड़े करने या फिर बुतपरस्ती की बू आने वाले स्मारक खड़े करने के प्रयास से मैं सख्त रूप से नाराज हूं। ऐसे मामलों में मैंने अपने विचार हमेशा से स्पष्टरूप से रखे है। मैं तो ऐसे स्मारक बनानेवाले या इस दिशा में सोचनेवाले और कार्यारम्भ करनेवाले लोगो को ऐसा न करके, रुक जाने की विनती करता हूं’

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