मोदी सरकार के साथ एक जो बड़ी विडंबना सामने आई है वो ये है कि नरेंद्र मोदी जो खुद को गरीब का बेटा बताकर सत्ता में पहुंचे उनके प्रधानमंत्री बनते ही उनकी सरकार को उद्योगपतियों की सरकार कहा जाने लगा।

उद्योगपति गौतम अडानी से लेकर मुकेश अम्बानी तक से उनकी नजदीकियां भी इस सब का एक कारण रही।

फिर भी ये तो नहीं कहा जा सकता है कि इस से पहले की सरकारों की नज़दीकी उद्योग-घरानों के साथ नहीं थी। ये बात भाजपा के समर्थक भी कहते हैं। भारतीय राजनीती का हाल ऐसे है कि दूध का धुला कोई नहीं है।

इसलिए हम सबसे बहतर नहीं बल्कि ख़राब में से कम ख़राब को चुनते हैं। नरेंद्र मोदी भी इसलिए ही सत्ता में आए क्योंकि उस समय वो ‘अंधों की जमात में काड़ा राजा’ बनकर उभरे।

लेकिन अब ये देखना होगा कि क्या इस से पहले जो सरकार थी यानि यूपीए क्या उसने भी उद्योगपतियों के लिए इतना किया जितना मोदी सरकार कर रही है। वैसे तो इसके कई पैमानें हैं लेकिन इस समय चर्चित उद्योगपतियों की लोन माफ़ी से भी इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2004 और 2014 के बीच सरकारी बैंकों द्वारा 1.9 लाख करोड़ से कम लोन बट्टे खाते में डाला गया। बट्टे खातों में डालना यानी जिस पैसे के वापस आने के उम्मीद ना रहे यानि जिसे माफ़ ही मान लिया जाए।

वहीं, अप्रैल 2014 से अप्रैल 2018 के बीच देश के 21 सरकारी बैंकों ने कुल 3,16,500 करोड़ रुपए का लोन बट्टे खाते में डाला।

मतलब अप्रैल 2014 से अप्रैल 2018 तक 21 पीएसबी द्वारा बट्टे खाते में डाला गया लोन यूपीए के समय 2014 तक माफ़ किये गए लोन से 166% अधिक है। जितना कांग्रेस ने उद्योगपतियों के लिए 10 सालों में नहीं किया उतना भाजपा ने केवल चार सालों में कर दिया।

मोदीराज में पढ़े लिखे युवा हुए ज्यादा बेरोजगार, पोस्ट ग्रेजुएट्स की बेरोजगारी दर 5.8% से हुई 8.4%

अब अगर कर्ज वसूली की बात करें तो किसान द्वारा कर्ज ना चुकाने पर उसके खेत से लेकर घर तक को बच देने वाले सरकारी बैंकों ने पिछले चार सालों में उद्योगपतियों से कुल 44900 करोड़ रुपए का क़र्ज़ वसूल किया और 3,16,500 करोड़ रुपए का कर्ज माफ़ किया। यानी इन बैंकों ने जितना कर्ज वसूला उससे लगभग सात गुना माफ़ कर दिया।

आंकड़ों के अनुसार चार साल की अवधि के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा बट्टे खाते में डाली गई राशि 2018-19 के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा पर प्रस्तावित बजटीय व्यय से दोगुना है, जो 1.38 लाख करोड़ रुपये है। ये उस असमानता का उदाहरण है जो सरकार खुद पैदा कर रही है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here