उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर में एक प्राथमिक विद्यालय में मिड डे मील के नाम पर बच्चों को नमक-रोटी खिलाने के मामले को उजागर करने वाले पत्रकार पवन जायसवाल के खिलाफ सोमवार को एफआईआर दर्ज की गई। पत्रकार के खिलाफ पुलिसिया कार्रवाई को लेकर ज़िलाधिकारी अनुराग पटेल ने बेतुकी सफाई दी है।
उन्होंने मंगलवार को मीडिया से बात करते हुए कहा कि जनसंदेश के पत्रकार पवन जायसवाल ने प्रिंट मीडिया के बजाए ख़बरिया चैनल की तरह वीडियो वायरल किया था। पत्रकार को अपने समाचार पत्र में फोटो सहित समाचार छापना चाहिए था, जबकि उन्होंने वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। इससे लगता है कि वह किसी तरह की साज़िश में शामिल थे।
#Mirzapur DM बता रहे है। कि पत्रकार पर FIR क्यों?
“कह तो रहा है वीडियो बनाइये. आप प्रिंट मीडिया के पत्रकार हो फ़ोटो खिंच लेते आप जो गंभीरता लग रही थी , ग़लत हो रहा है तो उसे छाप सकते थे उन्होंने ऐसा नहीं किया इसलिए भूमिका संदिग्ध लगी”
— Milind Khandekar (@milindkhandekar) September 3, 2019
डीएम के बयान के मुताबिक किसी धांधली के मामले को वीडियो के ज़रिए उजागर करना साज़िश की श्रेणी में आता है, लेकिन कैसे ये उन्हें भी नहीं पता। पता भी कैसे हो क्योंकि कानून की किताब में तो ऐसा कोई प्रावधान नहीं, जिसके तहत धांधली के मामले को वीडियो के ज़रिए उजागर करना ऐसी साज़िश माना जाए, जिसपर एफाईआर दर्ज की जा सके।
अपने बयान में डीएम पटेल ने पत्रकार के ख़िलाफ़ पुलिसिया कार्रवाई को सही ठहराने के लिए एक और दलील दी। उन्होंने कहा कि जब पत्रकार पवन प्रिंट मीडिया के लिए काम करते हैं तो फिर उन्होंने वीडियो सोशल मीडिया पर क्यों वायरल किया? उन्होंने कहा कि इससे पता चलता है कि पत्रकार ने ये काम साज़िश के तहत किया।
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अब सवाल ये उठता है कि क्या प्रिंट मीडिया के पत्रकार को ये अधिकार नहीं है कि वह सोशल मीडिया पर अपनी रिपोर्ट के वीडियो को पोस्ट कर सके? क्या प्रिंट मीडिया के पत्रकार द्वारा सोशल मीडिया पर अपनी रिपोर्ट शेयर करना जुर्म है? अगर ये जुर्म नहीं है तो फिर किस आधार पर पत्रकार के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की गई?
क्या डीएम पटेल ये मानेंगे कि पत्रकार के खिलाफ कार्रवाई सिर्फ इसलिए की गई क्योंकि उसने शासन-प्रसासन के चेहरे को बेनक़ाब कर दिया?