2014 के बाद जितने भी राज्यों के चुनाव हुए उसमें ईवीएम मशीनों में धांधली और गड़बड़ी का मामला सामने आया था। इस दौरान स्वंतंत्र संस्था ‘चुनाव आयोग’ पर प्रश्न चिन्ह लग गया! कि चुनाव आयोग को ओपरेट कर मोदी सरकार अपने हिसाब से चला रही है। इसी के मद्देनजर सभी विपक्षी पार्टियों ने चुनाव आयोग से बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग कर रही हैं।

बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग को लेकर मंगलवार को दिल्ली में चुनाव आयोग ने सर्वदलीय बैठक बुलाई। बैठक में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने समूचे विपक्ष की तरफ से कहा है कि, “देश में मतपत्र से चुनाव की व्यवस्था की ओर फिर से लौटना होगा और चुनावी खर्च को कम करना होगा। इस मांग का 70 फीसदी राजनीतिक दलों ने समर्थन किया है।”

विपक्ष की तरफ से कहा गया है कि,’ईवीएम से चुनाव जारी रखने का समर्थन भाजपा और उसके कुछ सहयोगी दल कर रहे हैं, इस बैठक में भाजपा और उसके सहयोगी अलग-थलग पड़ गए थे।’ क्योंकि लोकसभा चुनाव में 69 फीसदी वोट पाने वाली पार्टियाँ कह रही हैं कि बैलेट पेपर से चुनाव होना चाहिए। मगर, इसके बावजूद चुनाव आयोग ईवीएम से चुनाव कराने की जिद क्यों कर रहा है? इसको जनता को समझना होगा!

बैलेट पेपर के मुद्दे को ऐसे भी देखा जाना चाहिए कि लोकतंत्र में 31 फीसदी वोट पाने वालों  की मनमर्ज़ी नहीं चल सकती। यहाँ यही देखने को मिल रहा है कि 69 फीसद के साथ विपक्ष एक तरफ और भाजपा 31 फीसद वोट के साथ एक तरफ हैं। लेकिन फिर भी चुनाव आयोग 31 फीसद वोट पाने वालो की ओर ज्यादा झुका नजर आ रहा है! ऐसे में चुनाव आयोग की कथनी करनी में बड़ा झोल नजर आता है।

यह एक दिलचस्प और हैरानी भरी बात है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस और सपा-बसपा, राजद तृणमूल कांग्रेस जैसी क्षेत्रीय पार्टियाँ जो 162 सीटों का प्रतिनिधित्व करते हुए भी ‘चुनाव’ बैलेट पेपर से कराने के पक्ष में मांग करते आ रही हैं।

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मगर चुनाव आयोग है कि टस से मस नहीं होता! वो तो जैसे किसी के कहने पर चल रहा है। क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ईवीएम के भरोसे ही 2024 तक सरकार चलाने की बात इतने आत्मविश्वास के साथ कह पाते हैं?

वहीं आयोग द्वारा बुलाई गई बैठक में कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने बताया कि पार्टी ने आयोग से ये भी कहा है कि अगर बैलेट पेपर से चुनाव करना संभव नहीं हो तो विकल्प के तौर पर ईवीएम के साथ लगे वीवीपैट से कम से कम 30 फीसदी मशीनों की जाँच कराई जाए, ताकि देश में स्वंतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित हो सके।

विपक्ष ने आयोग से चुनाव में खर्च को सिमित करने को भी कहा था। विपक्ष का इशारा भाजपा की तरफ है क्योंकि हालिया चुनावों में बीजेपी ने पैसा पानी की तरह बहाया है।

मतलब साफ है कि उद्योगपति भारतीय जनता पार्टी पर चुनाव में जमकर पैसा लुटा रहे हैं। बदले में बीजेपी सरकार अपने उद्योगपति मित्रों को फायदा पहुंचा रही है।

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