सवाल अकबर के इस्तीफ़े का नहीं है। इस्तीफ़ा लेकर कोई महान नहीं बन जाएगा। वो तो होगा ही। मगर जवाब देना पडेगा कि इस अकबर में क्या ख़ूबी थी कि राज्य सभा का सदस्य बनाया, बीजेपी का सदस्य बनाया और मंत्री बनाया।

इसके दो दो दलों के अंदरखाने तक पहुँच होती है। सत्ता तंत्र का बादशाह बन जाता है। आराम से कांग्रेस का सांसद, आराम से भाजपा का सांसद।

क्या प्रधानमंत्री ने अकबर को मंत्री बनाते समय अपना होमवर्क नहीं किया था? यह कैसे हो सकता है? उन्हें बताना चाहिए कि क्या वाक़ई अपने राजनीतिक जीवन में वे अकबर के अंतरंग क़िस्सों से अनजान थे?

दुनिया को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का संदेश दे रहे थे और ख़ुद अकबर बचाओ अकबर बढ़ाओ में लगे थे? अकबर की राज्य सभी की सदस्यता भी जानी चाहिए। ये बीजेपी को तय करना है कि उसकी पार्टी में अकबर ‘महान’ होगा या नहीं

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नौ महिला पत्रकारों ने आरोप लगाए हैं। चार के आरोप तो इतने गंभीर क़िस्म के हैं कि उन्हें पढ़ते ही अकबर को सरकार और पार्टी से तुरंत निकाल देना चाहिए। आप उनमें से किसी एक का पूरा ब्यौरा पढ़ जाइये, आपको नींद नहीं आएगी।

क्या यह भी संयोग है कि फ़ेसबुक पर अकबर पर मेरी पोस्ट धीमी कर दी गई है? हिन्दी अख़बारों के कई ज़िला संस्करणों से अकबर की ख़बर ग़ायब है? जिन हिन्दी अख़बारों में अकबर के कारनामे छपे हैं उनमें किसी महिला पत्रकार की आपबीती विस्तार से नहीं है। एक अकबर के लिए इतना सबकुछ।

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अकबर के इस्तीफ़े की ख़बर आती होगी लेकिन सोशल मीडिया और मीडिया में ख़बरें रोक कर और साधारण बनाने के पीछे कौन है? क्या आप ऐसा भारत चाहते हैं जहाँ ख़बरें हर स्तर पर रोक दी जाएँ?

ये बुज़दिल इंडिया किसके सपनों के लिए बन रहा है? आप कभी ये सवाल पूछेंगे ही नहीं ? क्या आपने सब कुछ सत्यानाश कर देने की क़सम खा ली है?

– रवीश कुमार

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