गुजरात दंगों के दौरान हिंसा से निपटने के लिए बुलाई गई सेना की टुकड़ी का नेतृत्व करने वाले लेफ़्टिनेंट जनरल ज़मीरुद्दीन शाह ने अपनी किताब ‘द सरकारी मुसलमान’ में दंगों को लेकर गुजरात की तत्कालीन मोदी सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं।

उन्होंने अपनी किताब में  दावा किया है कि दंगों के दौरान अहमदाबाद पहुंची सेना को दंगा प्रभावित इलाक़ों में जाने के लिए गाड़ी न होने की वजह से पूरे एक दिन का इंतज़ार करना पड़ा था, अगर सरकार उन्हें ट्रांसपोर्ट की सुविधा दे देती तो सेना कुछ और जानें बचा सकती थी।

अगर मोदी चाहते तो गुजरात के दंगे रोके जा सकते थे, सरकार ने सेना को नहीं मुहैया कराई गाड़ीः पूर्व लेफ़्टिनेंट जनरल

पूर्व लेफ़्टिनेंट जनरल द्वारा किए गए इन दावों को लेकर लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है।

आरजेडी ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से लिखा, “गुजरात का मुख्यमंत्री जानबूझकर 2002 में एक दिन और सोने का ढोंग करता रहा और लगभग 300 लोग और मारे गए! आज वही मुख्यमंत्री खुद को चौकीदार बता रहा है और पूंजीपति घोटालेबाज मित्रों को भगौड़ा बनने में मदद कर रहा है”!

ग़ौरतलब है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से हज़ारों करोड़ का घोटाला करने वाले कई बड़े उद्योगपति देश छोड़कर भाग चुके हैं। इनमें विजय माल्या से लेकर नीरव मोदी और ललित मोदी तक का नाम शामिल है।

देश छोड़कर भागने वाले इन सभी उद्योगपतियों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करीबी बताया जाता है। विजय माल्या ने तो इस बात का ख़ुलासा भी किया है कि मोदी सरकार ने उन्हें देश छोड़कर भागने में मदद की थी। इस ख़ुलासे के बाद से ही पीएम मोदी के ‘चौकीदारी’ के दावों पर सवाल उठाए जा रहे हैं।

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मोदी अपनी चुनावी रैलियों में ख़ुद को प्रधानमंत्री नहीं बल्कि चौकीदार कहते हैं। वह कहते हैं कि उनकी निगरानी में देश में कुछ ग़लत नहीं होगा। लेकिन यह दुखद है कि उनकी निगरानी में घोटालेबाज़ उद्योगपति देश छोड़कर भाग रहे हैं और उनकी ही निगरानी में 2002 में गुजरात में हज़ारों लोग मौत के घाट उतार दिए गए थे।

पूर्व लेफ़्टिनेंट जनरल ने अपनी किताब में लिखा, 1 मार्च 2002 को देर रात 2 बजे मैं गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के घर पहुंचा। वहां तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस भी मौजूद थे। वे दोनों लोग डिनर कर रहे थे और मुझे भी ऑफर किया।

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मैं डिनर कर तुरंत वहां से निकल आया। मेरे पास गुजरात का एक टूरिस्ट मैप था और उन जगहों की जानकारी जुटाई, जहां हालात ज्यादा खराब थे। मैंने अधिकारियों को उन सामान की लिस्ट भी दी, जिसकी सेना को तत्काल जरूरत थी।

लेकिन 3000 सेना के जवान जो 1 मार्च को सुबह 7 बजे ही अहमदाबाद की एयरफील्ड में उतर चुके थे उन्हें गुजरात प्रशासन द्वारा यातायात मुहैया कराए जाने के अभाव में पूरा एक दिन इंतजार करना पड़ा। इसी दौरान सैकड़ों लोग मारे जा चुके थे।

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