नोटबंदी और जीएसटी ने भारत की अर्थव्यवस्था के साथ क्या किया है इसको लेकर एक और रिपोर्ट आई है। जो सिर्फ रोजगार पर ही बात नहीं करती है बल्कि ये भी बताती है कि मोदी सरकार की इस तथाकथित आर्थिक क्रांति (जीएसटी) ने किस तरह से असमानता को बढ़ावा दिया है और बाज़ार में छोटे कारोबारियों का टिकना मुश्किल कर दिया है।
दो करोड़ प्रति वर्ष नौकरी देने के नाम पर शासन में आए नरेंद्र मोदी के शासनकाल में नौकरी में वृद्धि यानि जॉब-ग्रोथ घटती जा रही है और साथ ही वेतन वृदि भी लगातार कम हो रही है।
जानीमानी रेटिंग एजेंसी ‘केयर रेटिंग्स’ की एक सलाना रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2017-18, में कंपनियों की नौकरियों में वृद्धि 3.8% की दर से हुई। जबकि वर्ष 2016-17, में यही दर 4.2% थी।
इन आंकड़ों को पढ़ते समय से याद रखना ज़रूरी है कि नवम्बर 2016, में नोटबंदी और वर्ष 2017, में जीएसटी को लागू किया गया था।
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यही नहीं लोगों के वेतन वृद्धि यानी सलाना वेतन में बढ़ोतरी भी पहले के मुकाबले हर साल घटती जा रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2017-18, में वेतन वृद्धि 4.3% हुई जबकि वर्ष 2016-17, 4.8% और वर्ष 2015-16, में वेतन वृद्धि 5.8% थी। मतलब मोदी सरकार आने के बाद से लगातार वेतन वृद्धि में कटौती हो रही है।
अब जीएसटी के उस प्रभाव की जो ये साबित करता है कि ये टैक्स व्यवस्था बड़े उद्योगों या कंपनियों से ज़्यादा इसने छोटे-मझोले व्यापारियों के व्यवसाय को बर्बादी के कगार पर खड़ा कर दिया है।
जब 2.4 लाख पद खाली पड़े हैं तो नौकरी देने के बजाय नौजवानों पर लाठियां क्यों बरसा रहे हो मोदीजी ?
केयर की रिपोर्ट बताती है कि जिन कंपनियों में 5000-10,000 तक कर्मचारी थे उसकी नौकरियों में वृद्धि की दर 15.4% से घटकर 2.3% पर आ गई है।
केयर रेटिंग्स ने ये रिपोर्ट, भारत के मुख्य क्षेत्रों की 1,610 कंपनियों का सर्वे कर तैयार की है। इनमें सभी तरह की कम्पनियाँ हैं जिस से पता चल सके किस तरह के उद्योग पर कैसा प्रभाव आर्थिक नीतियों का रहा है।