पिछले दिनों दिल्ली यूनिवर्सिटी में एक विवाद ने जन्म ले लिया। पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष ने आर्ट्स फैकल्टी गेट पर चुपके से रातोरात विनायक दामोदर सावरकर, सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह की मूर्तियां स्थापित की थी। जिसे कॉलेज प्रशासन ने हटाने के लिए कहा था, मगर उसके बाद यूनिवर्सिटी में सावरकर को लेकर सियासी बवाल उठ गया।

जिसमें एनएसयूआई ने इसके विरोध में सावरकर की मूर्ति को जूतों की माला पहनाई और मूर्ति के मुंह पर कालिख पोती। एनएसयूआई के राष्ट्रीय सचिव साएमन फारुकी ने इस मामले पर कहा कि एबीवीपी सदैव सावरकर को अपना गुरु मानती रही।

ये वही सावरकर है जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के सामने दया की भीख मांगी थी इसके बावजूद, एबीवीपी इस विचारधारा को बढ़ावा देना चाहती है। मैं सभी को याद दिलाना चाहता हूं कि यह वही सावरकर हैं जिन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया और तिरंगा फहराने से इनकार कर दिया था। यह वहीं सावरकर है जिसने भारत के संविधान को ठुकरा कर, मनुस्मृति और हिंदू राष्ट्र की मांग की थी।

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फारुकी ने कहा सावरकर के साथ शहीद भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लगना आज़ादी की लड़ाई का अपमान है। एक राष्ट्रविरोधी व्यक्ति के ऊपर सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय के छात्र संघ कार्यालय का नामकरण करना, विश्वविद्यालय और उसके छात्रों के लिए अपमान की बात है। यह एबीवीपी के फर्जी-राष्ट्रवाद का उदाहरण है।

वहीं इस मामले पर मूर्ति स्थापित करने वाले शक्ति सिंह ने कहा कि हमने मूर्ति लगाने के लिए बहुत पहले यूनिवर्सिटी प्रशासन से मांग की थी। मगर प्रशासन ने इस बात से इनकार कर दिया जिसके बाद उन्होंने रातोंरात सावरकर के साथ भगत सिंह और बोस की मूर्ति कैंपस में लगा दी थी।

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