मानवाधिकार हनन को लेकर भारत को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा है। संयुक्त राष्ट्र ने भारत को उन देशों की सूची में डाल दिया है जिसमें मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाले कार्यकर्ताओं और संगठनों पर बदले की कार्रवाई हो रही है।

गौरतलब है कि हाल ही में देश के कई राज्यों में भीमा कोरेगांव मामले को लेकर कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया है।

इन गिरफ्तारियों के बाद मोदी सरकार पर बदले की कार्रवाई करने के आरोप लग रहे हैं। इस से पहले भी सरकार पर इस तरह के आरोप लगते रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस की 9वीं वार्षिक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दुनिया के 38 देशों में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर बदले की कार्रवाई की जाती है। जिसमें डराने-धमकाने, हत्या, प्रताड़ना और मनमानी गिरफ्तारी शामिल हैं।

महासचिव की इस रिपोर्ट को अगले हफ्ते मानवाधिकार परिषद के सामने आधिकारिक रूप से पेश करने से पहले सहायक मानवधिकार प्रमुख एंड्रीयू गिलमोर ने कहा कि रिपोर्ट में ब्यौरा दिया गया है कि किस तरह से सिविल सोसाइटी को डराने-धमकाने और चुप कराने के लिए कानूनी, राजनीतिक तथा प्रशासनिक कार्रवाइयों में वृद्धि होते देखा जा रहा है।

रिपोर्ट में भारत के संदर्भ में कहा गया है कि नवंबर 2017, में दो विशेष कार्यप्रणाली अधिकार धारकों ने गैर सरकारी संगठनों का कामकाज रोकने के लिए विदेशी चंदा नियमन अधिनियम, 2010 के इस्तेमाल पर चिंता जताई। ये संगठन संयुक्त राष्ट्र के साथ सहयोग करना चाहते थे।

उदाहरण के तौर पर इनके लाइसेंस का नवीकरण करने से इनकार कर दिया गया। इसमें सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ सोशल कंसर्न (सीपीएससी) के कार्यकारी निदेशक हेनरी तिपागने और सेंटर फॉर सोशल डेवलपमेंट एवं इसके सचिव एन. उरीखीमबाम के मामलों का जिक्र किया गया है।

इसमें सेंट्रल जम्मू एंड कश्मीर कोलेशन ऑफ सिविल सोसाइटी के कार्यक्रम समन्वयक खुर्रम परवेज का भी जिक्र है।

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