आठ साल की बच्ची से लगातार आठ दिन तक बलात्कार करने के बाद उसकी हत्या कर दी जाती है। घटना के तीन महीने बाद भी इंसाफ कहीं नजर नहीं आता। उल्टा बलात्कार के इस वीभत्स घटना को धर्म और राष्ट्रवाद के चादर से ढका जा रहा है। और इन सब के बीच सत्ताधारी बीजेपी के अंदर जो मुर्दा शांति फैली हुई है वो देश की जनता को सोचने पर मजबूर कर देती है कि ये बेटी बचाने आए थे या बलात्कारी बचाने।

अपने बोलने की क्षमता से सत्ता हासिल करने वाले नरेंद्र मोदी ‘मौन मोदी’ बन चुके हैं। पीएम की चुप्पी बताती है कि बेटी बचाओ का नारा कितना बड़ा झूठ और फरेब था।

भारत जैसे पितृसत्तात्मक समाज में किसी मर्द का न बोलना तो एक हद तक समझ आता है, लेकिन सत्ता में बैठी वो शक्तिशाली महिलाएं क्यों चुप हैं? सुषमा स्वराज, निर्मला सितारमण, स्मृति ईरानी, मेनका गांधी क जैसी ताकतवर महिलाएं क्यों चुप हैं? इन महिलाओं की चुप्पी बताती है कि भारत में कोई महिला कितने भी बड़े पद पर क्यों न पहुंच जाए उसे हुक्म किसी पुरूष की ही माननी होती है, या फिर पुरुषवादी विचारों पर चुप्पी साधनी होती है। कुछ अपवाद हो सकते हैं लेकिन अगर महिला दक्षिणपंथी विचारधारा से प्रभावित हो तब तो पद का कोई महत्व ही नहीं रह जाता।

वरिष्ठ पत्रकार विनोद कापड़ी ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को टैग करते हुए ट्वीट किया है ‘सुषमा जी, निर्भया गैंगरेप के बाद संसद में आपने क्या भावपूर्ण ओजस्वी भाषण दिया था। करोड़ों लोगों की आँखें भर आई थीं। लेकिन अब कठुआ और उन्नाव में जो नृशंसता हो रही है, उस पर आप क्यों चुप हैं ? क्या सत्ता इंसान का मूल स्वभाव बदल देती है?’

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