एससी-एसटी एक्ट के ख़िलाफ़ 6 सितंबर को सवर्णों द्वारा बुलाए गए भारत बंद के दौरान देश के कई हिस्सों में हिंसक प्रदर्शन देखने को मिले। इस दौरान उत्तर प्रदेश और बिहार में सबसे ज़्यादा हिंसक घटनाएं हुईं।

दोनों ही राज्यों के कई ज़िलों में प्रदर्शन के दौरान सवर्णों ने जमकर आगज़नी और तोड़फोड़ की। कई ज़िलों से मारपीट के मामले भी सामने आए।

उत्तर प्रदेश और बिहार सवर्णों द्वारा बुलाए गए भारत बंद की आग में जल रहा था, लेकिन मीडिया में इसको लेकर कोई ख़ास कवरेज देखने को नहीं मिली। राष्ट्रीय जनता दल ने मीडिया पर भारत बंद को लेकर दोहरे मापदंड का आरोप लगाया है।

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आरजेडी का कहना है कि मीडिया ने सवर्णों द्वारा बुलाए गए भारत बंद में की गई हिंसा को उस तरह नहीं दिखाया जैसा उसने दलितों के भारत बंद में भड़की हिंसा को दिखाया था।

राष्ट्रीय जनता दल ने अपने ऑफिशियल ट्विटर अकाउंट से पोस्ट कर कहा, “दलितों द्वारा बुलाए गए भारत बन्द के बाद कई दिनों तक मीडिया दिखाती रही कि बन्द में जमकर गुंडागर्दी हुई, जबकि बाद में गुंडई तत्व कौन निकले यह सबको पता है।

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बता दें कि सवर्ण समाज एससी-एसटी एक्ट में सरकार द्वारा किए जा रहे संशोधन के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहा है। सवर्णों का कहना है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलकर समाज को बांटने का काम रही है। जबकि दलित समाज का कहना है कि एससी-एसटी एक्ट को लेकर किया गया सुप्रीम कोर्ट का फैसला दलित विरोधी है।

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कोर्ट के इसी फ़ैसले के ख़िलाफ़ दलित समाज ने अप्रैल में भारत बंद किया था। जिसमें कई जगह से हिंसक घटनाओं की ख़बरें सामने आई थीं। हालांकि बाद में जब हिंसा को भड़काने वालों की शिनाख़्त की गई तो उनमें कई आरोपी सवर्ण समाज के पाए गए थे।

क्या है एससी-एसटी एक्ट

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचार और उनके साथ होनेवाले भेदभाव को रोकने के मकसद से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 बनाया गया था।

जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में इस एक्ट को लागू किया गया। इसके तहत इन लोगों को समाज में एक समान दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किए गए और इनकी हरसंभव मदद के लिए जरूरी उपाय किए गए। इन पर होने वाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गई ताकि ये अपनी बात खुलकर रख सकें।

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