उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने दावा किया कि राफेल लड़ाकू विमान सौदे में अनिल अंबानी की कंपनी को 21000 करोड़ रुपए केवल ‘‘दलाली (कमीशन)’’ के रूप में दिए गए हैं।

उन्होंने कहा है की ये ‘‘इतना बड़ा घोटाला है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते’’। उन्होंने आरोप लगाया कि ऑफसेट करार के जरिये अनिल अम्बानी के रिलायंस समूह को ‘‘दलाली (कमीशन)’’ के रूप में 21,000 करोड़ रुपये मिले।

उन्होंने इस सौदे से जुड़ी कथित दलाली की 1980 के दशक के बोफोर्स तोप सौदे में दी गयी दलाली से तुलना की। अंबानी ने इससे पहले आरोप से इनकार किया था।

भूषण ने आरोप लगाया कि भाजपा नेतृत्व वाली सरकार ने केवल सौदे में अनिल अम्बानी की कंपनी को जगह देने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा से ‘समझौता’ किया, भारतीय वायु सेना को ‘बेबस’ छोड़ दिया।

उन्होंने कहा, ‘‘राफेल सौदा इतना बड़ा घोटाला है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। बोफोर्स 64 करोड़ रुपये का घोटाला था जिसमें चार प्रतिशत कमीशन दिया गया था। इस घोटाले में कमीशन कम से कम 30 प्रतिशत है। अनिल अम्बानी को दिए गए 21,000 करोड़ रुपये केवल कमीशन हैं, कुछ और नहीं।’’

भूषण ने पूछा कि वायुसेना को 126 विमानों की जरूरत थी और उसने किस तरह अपनी जरूरत ‘कम की’ और नये सौदे से तकनीक वाली उपधारा ‘गायब’ होने पर सवाल किए।

राफेल विवाद

राफेल एक लड़ाकू विमान है। इस विमान को भारत फ्रांस से खरीद रहा है। कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि मोदी सरकार ने विमान महंगी कीमत पर खरीदा है जबकि सरकार का कहना है कि यही सही कीमत है। ये भी आरोप लगाया जा रहा है कि इस डील में सरकार ने उद्योगपति अनिल अंबानी को फायदा पहुँचाया है।

बता दें, कि इस डील की शुरुआत यूपीए शासनकाल में हुई थी। कांग्रेस का कहना है कि यूपीए सरकार में 12 दिसंबर, 2012 को 126 राफेल राफेल विमानों को 10.2 अरब अमेरिकी डॉलर (तब के 54 हज़ार करोड़ रुपये) में खरीदने का फैसला लिया गया था। इस डील में एक विमान की कीमत 526 करोड़ थी।

इनमें से 18 विमान तैयार स्थिति में मिलने थे और 108 को भारत की सरकारी कंपनी, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल), फ्रांस की कंपनी ‘डासौल्ट’ के साथ मिलकर बनाती। 2015 में मोदी सरकार ने इस डील को रद्द कर इसी जहाज़ को खरीदने के लिए 2016 में नई डील की।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नई डील में एक विमान की कीमत लगभग 1670 करोड़ रुपये होगी और केवल 36 विमान ही खरीदें जाएंगें। नई डील में अब जहाज़ एचएएल की जगह उद्योगपति अनिल अंबानी की कंपनी बनाएगी। साथ ही टेक्नोलॉजी ट्रान्सफर भी नहीं होगा जबकि पिछली डील में टेक्नोलॉजी भी ट्रान्सफर की जा रही थी।

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