उत्तर प्रदेश में बदमाशों का हौसला किस हद तक बढ़ गया है इसकी मिसाल है कानपुर में घटी घटना, जहां हिस्ट्रीशीटर को पकड़ने गई पुलिस की टीम पर बदमाशों ने घेरकर गोलीबारी शुरू कर दी, जिसकी वजह से एक क्षेत्राधिकारी यानी डिप्टी एसपी समेत आठ पुलिसकर्मियों की मौत हो गई। इसके साथ ही 7 पुलिसकर्मी घायल भी हैं।

हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे को पकड़ने गई पुलिस पर गोलीबारी होने के बाद एक बार फिर से यूपी की कानून व्यवस्था पर सवाल उठने लगे हैं। बदमाशों के होश ठिकाने लगाने का दावा करने वाली योगी सरकार की कमजोरी निकल कर सामने आने लगी है। इसके साथ ही आरोपी की सामाजिक पृष्ठभूमि देखकर प्रतिक्रिया देने वाले मीडिया का भी दोहरा रवैया सामने आने लगा है।

इस घटना के बाद विपक्षी दल के नेताओं समेत आम लोग भी सोशल मीडिया पर तमाम प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं।

मीडिया के दोहरे रवैए पर तंज करते हुए, फेसबुक पर श्याम मीरा सिंह लिखते हैं-

8 पुलिसकर्मियों के हत्यारे का नाम विकास दुबे है, चूंकि नाम में दुबे है इसलिए वह आतंकवादी न होकर “हिस्ट्रीशीटर” है, आतंकवादी जैसा सम्मानित प्रतीक पाने के लिए नाम में मुहम्मद” होना हमारे देश में पहली क्वालिफिकेशन है। लेकिन यदि हत्यारोपी के सरनेम में यादव होता तो अब तक कहीं से कहीं का तार उठाकर उसे सपा सरकार से जोड़ दिया गया होता, और यदि गलती से मुसलमान निकल गया होता तो अब तक सिमी के बैंक अकाउंट से उसका आधार कार्ड जुड़ चुका होता. फिर तो ये सोने पे सुहागा होता, आखिर मुसलमान टीवी मीडिया का फेवरेट टॉपिक है, लेकिन दुर्भाग्य से हत्यारोपी दुबे निकल आया तो अब किसी टीवी पर कोई डिबेट नहीं चलनी। क्योंकि दुबे जी हत्यारोपी हैं, चौबे जी सम्पादक हैं, त्रिवेदी जी रिपोर्टर हैं, चतुर्वेदी जी मालिक हैं, पांडे जी कर्मचारी हैं, शर्मा जी मंत्री हैं, द्विवेदी जी विधायक हैं, शुक्ला जी कार्यकर्ता हैं, भागवत जी सरसंघचालक हैं.

यही तो है “वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति”

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