आम जनता खाने मोहताज रहे, तड़पती रहे मगर सत्ता में बैठने वालों को क्या फर्क पड़ता है। वो गरीबों तक अपनी बात पहुँचाने के लिए हजारों करोड़ फूंक देंगें मगर वही मदद गरीबों को नहीं कर सकते। सरकारें तो अपने विज्ञापन में खुशहाली दिखा देती है, फिर चाहे जनता भूखी सो रही हो।

अब लोगों को ये पता होना चाहिए कि आखिर उस ‘खुशहाली’ दिखने वाले प्रचार पर खर्च कितना होता है? इसका पता लगा है एक आरटीआई से- जिससे ये बात सामने आई है कि भले ही जनता तेल की बढ़ती कीमतों से परेशान रहे, राशन के लिए लाइन खड़े खड़े दम तोड़ दे मगर सरकार अपने प्रचार में कोई कमी नहीं रखना चाहती।

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विज्ञापन और प्रचार पर करोड़ों खर्च करने का आरोप मोदी सरकार पर पहले भी लग चुका है। अब आरटीआई की एक रिपोर्ट ने इन आरोपों पर ठप्पा लगा दिया है।

इस खुलासे से यह सामने आया है कि मोदी सरकार ने विज्ञापन में जितना पिछले 4 सालों में खर्च किया है, उसका आधा मनमोहन सरकार ने अपने 10 सालों में भी नहीं किया।

मोदी सरकार ने पिछले चार सालों में 5000 करोड़ रुपए सिर्फ प्रचार और विज्ञापन में उड़ा दिए है जबकि मनमोहन सरकार ने अपने शासनकाल के 10 सालों में 2,658 करोड़ रुपए खर्च किए थे।

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सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से मिली जानकारी के मुताबिक, बीजेपी ने जून 2014 से अगस्त 2018 तक प्रिंट मीडिया यानि की अखबार और पत्रिकाओं के माध्यम से प्रचार और विज्ञापन पर 2136 करोड़ खर्च किए थे।

भाजपा सरकार ने पिछले चार सालों में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में 2208 करोड़ रुपए के करीब खर्च किए हैं।

मंत्रालय से मिली जानकारी के मुताबिक, भाजपा सरकार ने अप्रैल 2014 से अगस्त 2018 के दौरान आउटडोर मीडिया यानि की होर्डिंग्स, बिलबोर्ड, बस, ऑटो आदि पर 647 करोड़ रूपए खर्च किए हैं।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पर्यटन मंत्रालय ने भी बाहरी विज्ञापन पर 30 करोड़ धनराशि खर्च की है। साल 2014-15 में 11 करोड़, साल 2015-16 में 14 करोड़ और साल 2017-18 में 5 करोड़ रूपए खर्च किए गए हैं।

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मोदी सरकार के कंज्यूमर विभाग ने आउटडोर मीडिया के जरिए 2014-15 में 14 करोड़ रुपए करोड़ और 2017-18 में 17 करोड़ रुपए खर्च किए हैं।

बता दें कि नोएडा के एक आरटीआई कार्यकर्ता रामवीर तंवर ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से भाजपा सरकार द्वारा साल 2014 से अब तक विज्ञापन और प्रचार खर्च की जानकारी मांगी थी जिसके जवाब से यह खुलासा हुआ है।

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