पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ते जा रहे हैं और जनता की जेब में आग लगाते जा रहे हैं। सरकार इस महंगाई की आग का कारण अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दामों का बढ़ना बता रही है। लेकिन क्या सही में पहले के मुकाबले दाम बढ़े हैं या ये अपनी नाकामी छुपाने का बहाना है?

सच्चाई ये है कि अगर 2013 यानि की पिछली सरकार के कार्यकाल से तुलना की जाए तो कच्चे तेल के दाम अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में घटे हैं। जिसमें बढ़ोतरी हुई है वो है केंद्र सरकार का जनता का जेब काटने का ईरादा और टैक्स नाम के हथियार की धार।

मोदी सरकार ने यूपीए सरकार के मुकाबले पेट्रोल पर लगाए जाने वाले टैक्स में 105% की बढ़ोतरी की है। वहीं, डीजल की बात करे तो प्रधानमंत्री मोदी ने ‘पहली बार ये काम करना’ की परम्परा को निभाते हुए डीजल पर लगने वाला टैक्स 331% कर दिया है। जो देश के इतिहास में पहली बार हो रहा है।

पेट्रोल की कीमत का ये हाल है की आज महाराष्ट्र में दाम 87.39 रुपए के स्तर पर पहुंच गए हैं। सितम्बर, 2013 में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चा तेल 109.47 प्रति डॉलर के दाम पर बिक रहा था। वहीं, सितम्बर, 2018 में कच्चे तेल की कीमत 76.18 प्रति डॉलर है।

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अब देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतों की तुलना करे तो 2013 पेट्रोल 79.40 रुपए की कीमत पर बिक रहा था वहीं वर्तमान में कीमत 87.39 रुपए पहुँच गई है। मतलब कच्चे तेल के दाम 30% घटने के बाद पेट्रोल की कीमत में इतनी ज़्यादा बढ़ोतरी हुई है।

इस बढ़ोतरी का मुख्य कारण केंद्र सरकार द्वारा लगाई जाने वाली एक्साइज ड्यूटी यानि की टैक्स है। 2013 में सरकार एक लीटर पेट्रोल पर 9.48 रुपए का टैक्स लगाती थी लेकिन मोदी सरकार ने इसे 105% बढ़ाते हुए 19.48 रुपए कर दिया है।

पेट्रोल के मुकाबले डीजल को देखे तो यहाँ इस सरकार का कहर सबसे ज़्यादा बरसा है। 2013 में डीजल दिल्ली में डीजल के दाम 52.54 रुपए थे जबकि आज ये 71.15 रुपिए हो गए हैं।

कारण ये है की 2013 में केंद्र सरकार एक लीटर डीजल पर टैक्स लगाती थी 3.56 रुपए जबकि 2018 में मोदी सरकार प्रति लीटर डीजल पर 15.33 रुपए टैक्स लगा रही है। मतलब 331% की बढ़ोतरी।

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