आज के दिन तमाम सरकारी और रूटीन कार्यक्रमों के बाद राजघाट के रास्ते उन लोगों के लिए खोल देने चाहिए थे जो अपनी माँगों को लेकर वहाँ जाना चाहते थे। राजघाट सिर्फ राजनयिकों और राष्ट्र प्रमुखों के माल्यार्पण के लिए नहीं है।

किसानों के भाषण के लिए भी है। दिल्ली किसानो से दूर जाएगी तो किसान दिल्ली आएँगे ही। रास्ता नहीं रोका जाता तो आराम से आते और किसान चले जाते। थोड़े दिन रूक भी जाते तो क्या होता।

गोदी मीडिया वैसे भी हुज़ूर की सेवा में किसानों की समस्या को ट्रैफिक प्राब्लम बता कर निपटा देता। लोगों को असुविधा न हो इसका तो इंतज़ाम हो ही सकता था। उद्योगपतियों के लिए हज़ारों करोड़ के साथ भागने से लेकर लाखों करोड़ के लोन में टेक्निकल खातों के ज़रिए रियायत के इंतज़ाम हैं तो ऐसा कुछ किसानों के लिए भी हो जाता।

इतने दिनों से किसान पद यात्रा कर रहे हैं। बीच रास्ते में ही उनसे बात हो सकती थी। नहीं की गई। अब दिल्ली की सीमा पर रोक कर क्या फ़ायदा। बेवजह तनाव ठीक नहीं है। किसानों को लेकर समाज और सरकार दोनों का इतना अंसेवदनशील होना अच्छा नहीं है।

ये कई सरकारों से संकट में हैं। इनके संकट को दूर करना ही होगा। इनके बच्चे जिन घटिया सरकारी स्कूल कालेजों पढ़ रहे हैं अगर उसे लेकर ये माँग करने लग जाएँ तो शिक्षा मंत्रियों की साँस फूल जाएगी।

शुक्र है अभी ये फ़सल के दाम तक ही सीमित हैं। बेहतर है किसानों से संवाद हो। उन्हीं की दिल्ली है। दिल्ली उन्हें दे दी जाए। आख़िर नेता कब तक जय जवान जय किसान के नाम पर गाँव वालों को ठगते रहेंगे। दे अक्तूबर के दिन किसी को राजघाट जाने से नहीं रोकना चाहिए था।

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