हर साल 28 सितंबर को हम शहीद भगत सिंह के जन्मदिवस के रूप में मनाते है। कई राजनेता भी सोशल मीडिया पर भगत सिंह की तस्वीर डाल कर कहते है कि भगत सिंह उनकी प्रेरणा हैं, ये बात और है कि हर महापुरुषों के जन्मदिवस पर उनकी प्रेरणा बदलती रहती है।

आम लोग भी भगत सिंह को सिर्फ टी-शर्ट या सोशल मीडिया तक ही सीमित रखते है। ये सब देखकर अच्छा लगता है कि लोग भगत सिंह को शहीद के रूप याद कर रहे है। लेकिन क्या इतना ही काफी है?

असल में भगत सिंह कौन थे? उनके विचार क्या थे? हम इन सब बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं। भगत सिंह ने कहा था कि व्यक्ति को मारना आसान काम है लेकिन विचारो को मारना मुश्किल है लेकिन आज की परिस्तिथि में ये बात बिलकुल विपरीत हो गई। आज हमने भगत सिंह को एक क्रांतिकारी व्यक्ति के रूप में याद किया हैं लेकिन, आज भी हम उनके विचारो से पूरी तरह परिचित नहीं है

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भगत सिंह एक महान क्रांतिकारी थे। जिन्होंने 23 साल 5 महीने और 26 दिन की उम्र में देश को आज़ादी दिलाने के लिए अपने प्राणो का बलिदान कर दिया। भगत सिंह वामपंथी विचारधारा के क्रांतिकारी थे। आज हम उनके अनुच्छेद ” मैं नास्तिक क्यों हूँ ” का ज़िक्र करेंगे। जिसमे उन्होंने बताया है कि वह ईश्वर की सर्वशक्तिमान छवि को क्यों नहीं मानते थे। इस कारण उनके मित्रगण उन्हें अहंकारी बताते थे। लेकिन भगत सिंह के अनुच्छेद ” मैं नास्तिक क्यों हूँ ” में कही उनके बातें आज भी प्रासंगिक है।

उनके अनुच्छेद में उन्होंने कहा कि ” अगर ईश्वर सर्वशक्तिमान हैं तो वह तो वह दुःख, तकलीफ ,और अत्याचार को मिटा क्यों नहीं देता। अगर वह ऐसा नहीं कर सकता हैं तो फिर उसने ऐसी दुनिया की क्यों बनाई, जहाँ भूख से तड़पे लाखो इंसान अत्याचार सहकर कितनी बेबसी देख रहे है। भगत सिंह सवाल करते है कि भगवान् ने ऐसी दुनिया क्यों बनाई, जिसमे कोई संतुष्ट नहीं है।

अगर आप ये कहते है कि ये भगवान का ही नियम हैं तो भगत सिंह सवाल करते हैं कि ” अगर भगवान भी नियमो से बंधा हैं, अगर भगवान नियमो का दास है तो भगवान सर्वशक्तिमान कैसे है ?

भगत सिंह अपने अनुच्छेद में बताते है कि अंग्रेजो ने हम पर इसलिए शासन नहीं किया कि भगवान उनके साथ था। अंग्रेजो ने हम पर इसलिए शासन किया कि उनके पास ताकत थी।

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भगत सिंह ने धार्मिक अंधविश्वास की कड़ी आलोचना में कहा कि दुनिया के लोग क्या क्या नहीं करते लेकिन हमारे में लोग पवित्र जीव के नाम पर अपने ही लोगो का सिर फोड़ रहे है। भगत सिंह ने ये सब बातें 1928 में कही थी लेंकिन आज तक ये बातें प्रासंगिक है। आज भी भारत के लोग गाय माता के नाम पर अपने ही लोगो की बेरहमी से हत्या कर देते है।

क्या भगत सिंह ने ऐसी ही आज़ादी के लिए अपने प्राणो का बलिदान दिया था। जिसमे नेता हिन्दू-मुसलमान के नाम पर देश में नफरत का माहौल बनाएंगे। जहाँ महिलाओ को छेड़छाड़ और बलात्कार जैसा घिनौना अत्याचार झेलना पड़े।

जहाँ सरकार द्वारा अपने अधिकारों की मांग करने और अन्याय के खिलाफ लड़ने पर महिलाओ को लाठियों से पीटा जाए। जहाँ पत्रकार का काम सत्ता की चाटुकारिता करना और देश में सत्ता के हित में नफरत का माहौल तैयार करना हो। जहाँ सत्ता की आलोचना करने पर पत्रकारों को मार दिया जाएं।

नहीं ये भगत सिंह ये सपनो का भारत नहीं है। ये वो आज़ादी नहीं है जिसका सपना भगत सिंह और क्रांतिकारी साथियों ने देखा था। ये तो वही बात हुई कि “ गोरे चले और भूरे आ गए ” यानी सिर्फ शासन ही बदला है पहले अंग्रेजो का था अब भारतीयों का शासन है लेकिन शासन का तरीका अभी भी शोषणकारी ही है। अभी भी किसान आत्महत्या कर रहे है, अभी भी आदिवासियों की ज़मीने छीनी जा रही है, अभी भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, अभी भी दलितों और मुसलमानो पर अत्याचार हो रहे है।

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भगत सिंह को टी-शर्ट पर नहीं अपने दिल में जगह देने की जरुरत है। हमें भगत सिंह के विचारो को समझकर उसे अमल में लाना चाहिए । उनके विचारो पर अमल करके ही हम उनके सपनो के भारत की रचना कर सकते है। उनके विचारो पर चलकर ही हम उन्हें के बेहतर श्रद्धांजलि दे सकते है।

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